ऐसा-वैसा | Aaisa-yaisa

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Aaisa-yaisa by श्री परिपूर्णानन्द वर्मा - Shri Paripurnanand Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऐसा-बैसा १३ पर, इसी मण्डली मे विधुशेखर ऐसे अधेड़ तथा सुशीज्ञ वकील भी अवश्य बेठे मिलेंगे । सभी जानते हैं कि उनकी वका- लत कम चलती है, बात अधिक । अदालते भी वकील का चरित्र आसानी से पहचान जाती हैं| न्याय के आसन पर बेठने वाला यह पहचान लेता है कि कोन वकील किस सीमा तक सचाई तथा न्याय का हिमायती है | इसीलिये विधुशेखर की सचाई की छाप सभी अदालतों पर है ओर न्याय की दलीलों में उनकी दुगेलता की कमी उनक्छी प्रतिष्ठा पूरी कर देती है । पर, बात करने का उनको इतना शोक था कि वे बिना घरटे दो घटे नव- युवक वकीलों से बहस किये मानते न थे। आज उनके অলী एक ऐसा वकील पड़ गया जिसने अपनी वकालत चलाने का एक ही उपाय दरद्‌ निकल्लाथा। बहु सरकार के विरोधियों का बकील बन गया था। इसमें अनेक लाभ थे। कानून का ज्ञान चाहे कितना ही कम हो, सरकार का विरोध करना ही साहस तथा प्रतिभा का काम सममभा जाता था। यदि ओर मुकदमा जीत गये तो कीति ओर नाम । यदि हार गये तो “निकम्मी सरकार के पक्तपातः का डंका पीटा जाता था अ्रदालत उसकी अशिष्ट- ताओं को आवश्यकता से अधिक सहन कर लेती थी। जन समूह ने १४० वर्षो से (सरकार का विरोधः करना सीखा था | अब जब अपनी सरकार हो गयी तब भो आदत तो पुरानी ही बनी रही । इसलिये इस कायं का महत्व पहले से भी अधिक दहो गया | विधुशेखर ने उस नवयुवक वकील के सामने कुर्सी खीचते हुये कहा, “भ्रष्टाचार, अ्रष्टाचार तो आप बहुत चिल्लाते हैं पर में देखता हूँ कि मिसिलों की नाजायज़ नक़लें लेने के लिये चपरासी से लेकर पेशकाश तक को सबसे ज्यादा घूस आप ही देछे ই;




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