कम्पनी के काले कारनामे | Kampani Ke Kale Karaname

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Kampani Ke Kale Karaname by बलदेव प्रसाद गुप्त - Baldev Prasad Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्ु कम्पनी के काले कारनामे “ भारत के लोहे के व्यवसाय से केवल स्थानीय आवश्यकताये ही पूरी नहीं होती थीं बल्कि उससे बनी हुई चीज विदेशों को भी मेजी जाती थीं । इससे बनी हुई चीज़ों की उत्तमता सारे संसार में प्रसिद्ध थी | दिल्ली के निकट का लौह-स्तम्भ, जो कम से कम डेढ़ हज़ार वष पुराना है, लोद्दा गढ़ने की ऐसी कुशलता प्रकट करता है जो इसका मेद समभकने का प्रयत्न करने वाले सभी ब्यक्तियों के लिए; विस्मय की वस्तु रददा है । श्रीयुत बाल (भारत के भौगोलिक पैमाइश के सरकारी 'मदकमे के भूतपूव अधिकारी) स्वीकार करते हैं कि आज से कुछ वर्षों' पूर्व भी संसार के बड़े से बड़े कारखानों में इस तरह का स्तम्भ तैयार हो संकना बिलकुल असम्भव होता | इस समय भी बहुत कम ऐसे कार- खाने हैं जहाँ लोदे की इतनी भारी चीज़ तैयार की जा सकती है। ब्ासाम में भारी से भारी तोपें तैयार होती थीं । भारतीय लोहा या इस्पात ऐसी चीज़ थी जिससे दमइश्क के दृथियारों के फल बनते थे जिनकी सारे संसार में प्रसिद्धि थी;उन पुराने समयों में फारस के व्यापा- रियों को भारत में इतनी दूर त्राकर ये चीज़ प्रात कर इन्हें एशिया के देशों में भेजने से लाभ होता था । भारतीय इस्पात की कँची, चाकू ब्ादि के लिए इगललेंड में भी एक समय काफी खपत होती थी । इस्पात और गढ़े हुए लोहे को तैयार करने की विद्या कम से कम दो हज़ार वर्ष पहले श्रत्यघिक पूणता प्राप्त कर चुकी थी |” ( प्रथम संस्करण पृष्ठ १५९-१६० ) भारत के वख्र का व्यवसाय ऐसा था ।कि उससे पश्चिमी देशों के इंसाई राज्यों के ख्री-पुरुष वस्नाच्छादन प्राप्त करते थे ।




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