वैराग्यमूर्ति जम्बूकुमार | Vairagyamurti Jambukumar

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Vairagyamurti Jambukumar by श्री पुष्कर मुनि जी महाराज - Shri Pushkar Muni Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) फूल सुँघने फल खाने को गाने को आकाश मिला | कौन पूछता पोस्ट कौन-सा और कौन-सा लिखें जिला ॥। (उदाहरण) न ध की ४ बोले बिना बिना डोले ही और बिना खोले ही आँख । (अनु्ास) न रद न न जम्बू की गति में जब देखी अजब गजब वाली मस्ती । राजहस ऐरावत डरकर, छोड गए शहरी बस्ती ॥. (रूपक क इस प्रकार प्रस्तुत काव्य मे भाव पक्ष एव कला पक्ष दोनो अत्यस्त उज्ज्वल एवं उदात्त हैं । कवि का सन्देश है विश्व प्रपच से विमुख होकर साधना के द्वारा मुक्ति को वरण्‌ करना । वस्तुतः यह काव्य जहाँ ज्ञान-पिपासुओ के लिए उपादेय है वहाँ साहित्य मनीपियो के लिए भी ग्राह्म हैं। श्रद्धय सद्गुरुवयं ने दोनो ही वर्ग के” _ व्यक्तियों के लिए यह अपूवव देन दी है । प्रबुद्ध पाठकों के लिए यह ग्रन्थ अपूवें निधि के रूप मे है। भाशा ही नहीं मुझे पूर्ण भात्मविश्वास है कि भारत भारती के अमूल्य कोश मे इससे भी अधिक मुल्यवान्‌ साहित्य रूपी “रत्न' गुरुदेव श्री समय- समय पर प्रदान कर उसकी अभिवृद्धि करते रहेगे । सिकन्दरावाद (भाध्र ) जैन स्थानक --देवेन्द्र मुनि शास्त्री १-प८-७६




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