साधना का राजमार्ग | Sadhana Ka Rajamarg

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Sadhana Ka Rajamarg by श्री पुष्कर मुनि जी महाराज - Shri Pushkar Muni Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्ण आस्था रखते हुए अच्छी तरह उन्हीं के अ्रनुरृुपष आचरण करना (1080 ८010॑घ८६ ) सम्बक चारित्र है। ज्ञान नैत्र है. चारित्र चरण है पत्र का अवलोकन तो किया पर হ্যা उम्त ओर नही बड़े तो अभीष्मित लक्ष्य की प्राप्ति असंभव है। स्विनॉकने लिखा ह “विना चारित्र के जान थीशे की आँख की तरह 81 हैं सिर्फ दिखनाने के लिए और एक दम उपयोगिता रहित ”। ज्ञान ০ मन डक का फल विरकित है? । ज्ञान होने पर भी यदि विपयो में अनुरक्ति नानक খা শা কল (নবি है बनी रही तो वह वास्तविक ज्ञान नहीं है । सम्यक्‌ चारित्र-जैन साधना का प्राण है। विभावगत आत्मा को पुन: शुद्ध स्वरूप में अधिप्ठित करने के लिए सत्य के परिज्ञान के साथ जागरुक भाव से सक्रिय रहना आचार-आराबवना है। चारित्र एक ऐसा चमकता हीरा है जो हर किसी पत्थर को घिम सकता है। जीवन का लक्ष्य सुख नहीं चारित्र हर “उत्तम व्यक्ति यब्दों से सुस्त भर चारिः व्यक्ति यब्दों से सुस्त और चारित्र में चुस्त होता है? । बौद्ध साहित्य में सम्यक्‌ चारित्र को ही सम्यक व्यायाम कहा है । समन्वय : सम्यग्दर्शन. सम्यग्नान, ओर्‌ सम्यक्‌ चारि ये साधना के तीन अंग है अन्य दर्शन केवल एक अ्रंग को ही प्रमूखना देते हैँ किन्तु जैन दर्शन तीनों के समन्वय को | भगवान श्री महावीर तने चार प्रकार के पुरुषं वतलप्रे हैं :--- नहीं योस्य म লন ই পলা की बीलसम्पन्न है, श्रुतसम्पन्न नहीं। करूएाओऋ ৬ दूसरा श्रुतसम्पन्न है यीलसम्पन्न नहीं । शिस्न 1 जानेस्य फलं तिरत्तिः २ वीचर्‌, 3 कन्पयूयियम




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