अम्बा | Amba

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Amba by उदयशंकर भट्ट - Udayshankar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अम्बा प्रथम यह भी सुनना पड़ा महाराज में पागल कैसे अरे क्या में पागल हूँ निश्चय ही महाराज में पागल । कर ब्राह्मण आज प्रातःकाल ही तुम्दें क्या हो गया ? बिदूषक--कुछ भी तो नहीं महाराज मैं प्रमाण दे सकता हूँ कि में पागल नहीं हूँ । आपका । काशिराज--- फिर कुछ गम्भीर होकर परन्तु मेंने जो देखा वह असस केसे हो सकता है । मैंने स्पष्ट देखा कि एक गोरव्ण का अधेड़ युवक मेरी तीनों कन्याओं को उठाये लिये घबरा कर कब कब काशिराज---स्वप्र में श्राझ्मण स्वप्न में ओह ऐसा क्या कभी देखा था तीनों कन्याओं को विदूषक---घधत्तेरे की क्या यह सब स्वप्र चचों थी महाराज ? काशिराज--उस स्वप्र की स्सृति आते ही में जैसे बेचैन सा हो उठता हूँ विदूषक--स्वप्र भूठ होता है मद्दाराज स्वप्र पर




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