राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज भाग - 2 | Rajasthan Men Hindi Ke Hastalikhit Granthon Ki Khoj Bhag - 2
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना
भारतीय वाशमय बहुत दी विशाल एवं विविघतापू्ण है । अध्यात्मप्रधान
भारत में भौतिक विज्ञान ने भी जो आश्ययंजनक उन्नति की थी उसकी गवाही उपलब्ध
प्राचीन साहित्य भली प्रकार से दे रहा है । यहाँ के मनीधषियों ने जीवनोपयोगी प्रत्येक
विषय पर गंभीरता से विचार एवं अन्वेषण किया 'औऔर वे भावी जनता के लिये उसका
निचोड़ ग्रन्थों के रूप में सुरक्षित कर गये । उस अमर वाडमय का शुणगान करके
गोरवानुभूति करने मात्र का अब समय नहीं है । समय का तकाजा दै--उसे भली
भाँति न्वेघण कर झीघ ही प्रकाद में लाया जाय । पर खेद के साथ लिखना पढ़ता
है कि हमारे गुणी पूव॑जों की अनुपम एवं अनमोल धरोहर के हम सच्चे अधिकारी
नहीं बन सके । हमारे उस 'झम्रतोपम वाउमय का अन्वेषण एवं अनुशीलन पाश्चात्य
विद्वानों ने गत शताब्दी में जितनी तत्परता एवं उत्साह के साथ किया हमने उसके
एकाधिकारी --ठेकेदार कहदलाने पर भी उसके दातांझ में भी नहीं किया, इससे ्धिक
परिताप का विषय हो ही क्या सकता है ? जिन अनमोल ग्रन्थों को हमारे पृवेंज बड़ी
आशा एवं उत्साह के साथ, हम उनके ज्ञानघन से लाभान्वित होते रहें--इसी पवित्र
उद्देश्य से बड़े कठिन परिश्रम से रच एवं लिखकर हमें सौंप गये थे, हमने उन रत्नों को
पहिचाना भह्दीं । वे नष्ट होते गये व होते जा रहे हैं तो भी उसकी भी सुधि तक नहीं
ली ! किसी माई के लाल ने उसकी ओर नजर की तो वह उसे व्यथे का भार प्रतीत
हुआ और कोड़ियों के मौल पराये हाथों सौंप दिया । सुधि नहीं लेने के कारण जल
एवं उदेई ने उसका विनाश कर डाला । कई व्यक्तियों ने उन ग्रन्थों को फाड़फाड़ कर
पुड़ियां बांध कर लेखे लगा दिया । कहना दोगा कि इनसे तो वे झच्छे रहे जिन्होंने
त्प मूल्य में ही सद्दी बेच डाला, जिससे अधिकारी व्यक्ति ्याज भी उनसे लाभ
उठा रहे हैं । जिन्होंने पैसा देकर खरीदा है वे उसे संभालेंगे तो सही । हमें तो पृषेजों
के श्रम का मूल्य नहीं, पैस का मूल्य है, अतः बिना पैसे प्राप्त चीज को कदर भी
केसे करत ?
भारतीय सादित्य की विशेषता एवं उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए लाद्दोर
निवासी पं० राधाकृष्णु के प्रस्ताव को सं० १८९८ में स्वीकार कर भारत सरकार ने
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