वीर सिंह देव चरित | Veersingh Dev Charit
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
396
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चीरसिंद देव-चारित
शिसावान कर कलित जलज 'अच्छद सिर सोदै।
हरि चरनोदक बन्द शुन्द दुति अति मन मोहै ॥
अंग विभूवि विभाति सहित गनपति सुखदायक ।
बूष वाहन संप्राम-सिधि-संजुव सब लायक ॥|
उर चतुर चारु चकी बसतु संग कुमार हर मार मति।
लय शंकर शंका इरन भव पारवती पति सिद्ध गति ॥१॥
विष्णु जो के शिर पर चोटी, सुत्द्र हाथों में वमश 'खौर शिर के
रूपए श्रच्छ्त शोभा दे रहे है । गणपति ने अपने शरीर पर दिभूति लगा
रखी है, बड़ शे। भा दें रहो दैं । सब प्रकार से योग्य और सप्रम में
सिद्धना प्राप्त किए हुए शिव (इपवाइन) जा हें । शिव जी के हृदय में चक
धारण करन वाले (चक्रा) विष्णु भगवान निवास करते हैं श्रीर इर को
मारने वाले कार्दिकेय (कुमार) साथ रहते हैं । राका्ों का विनाश करते
बाले, पार्वती के पति शकर भगवान की जय हो +13॥
एक(राजा मानसिद्द क्छुवाहों केसीदास,
जिद्िवर वारिधघि के उदर विदारे हैं।
दूसरे 'अमरसिंद राना सिसौदिया श्ञाजु,
जासी रिरान गजराज दिय हारे हैं ॥
तीसरे वुद्देला राजा बीरसिंद श्रोडले की
जाके दुख दुसद्द जलाल दीन जारे हैं।
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