विज्ञान गीता सटीक | Vigyan Gita Satik

Vigyan Gita Satik by श्री श्यामसुन्दर द्विवेदी - Shri Shyamsundar Dvivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) काशीनाथ के घुन्न भाषा-कवि मंदमति केशवदास हुए जिन्होंने उत्तम दानन्द की झ्ागार ज्ञानगीता की रचना की ।६।॥)। देवलोगो ने संस्कृत भाषा को अपनाया । नागजनों (प्राकृतजनों) ने नाग (प्राकृत) भाषा को अपनाया । केशव का कहना है. कि मैं मशुष्य जा अतएव नर-भाषा (हिन्दी) में ज्ञानगीता की रचना को । इस पद से ऐसा ज्ञात होता है कि केशव के मन में एक 5कार की ग्लानि हिन्दी में रचना करते समय हो रही थी उसी के परिहार के लिए उन्होंने उपरोक्त तथ्य को हू निकाला है । दण्डक--काम क्रोध लोभ मोह दंभादिक केशोराइ । पाखण्ड अखण्ड भूठ जीतिबे की रुचि जाहि ॥ पाप के प्रताप. ताके भोग रोग सोग | जाके शोध्यों चाहे आधि व्याधि भावना अशंष दाहि ॥ जीत्यों चाहे इन्द्रिगण भाँति भाँति माय मनु लोपिके | नेक भाव देख्यों चाहे. एक. ताहिं ॥ जीत्यों चाहे काल इहु देह चाहे रह्यों गेहु । सोइ तो सुनावे सुने गुने ज्ञान गीति काहि ॥£॥। (१) सम्पूर्ण इस पद में मह।कवि केशव ने विज्ञान गीता के महात्म्य पर अकाश डाला है । संसार की नेक भव बाधाओं से मुक्ति का साधन विज्ञान गीता को केशव से बताया है । काम क्रोध लोभ मोह दंभ पाखरुड भूठ को जीतने की जिसके मन में अभिलाषा है पापों के परिणाम स्वरूप श्राप्त भोग रोग शोक झनेक आधिव्याधियों को दमन करने की जिसकी भावनायें हैं अनेक प्रकार की आसक्तियों में लिप्त इन्द्रियों को जीतकर एक रूप में देखने की जिसकी उत्कट इच्छा है इस कलियुग को जीतकर इस संसार में रहने कौ जिसकी इच्छा है उसे विज्ञानगीता को सुनना और खुनाना चाहिये ।




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