यादों की तीर्थयात्रा | Yadon Ki Tirthyatra

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Yadon Ki Tirthyatra by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री जगदीशबा, माथुर / 15 की भूरि भूरि प्रदासा की थी । मैंने वह कत्तरन महा निर्देशन की टिप्पणी के नीचे चिपवा दी अर लिखा, महानिदेशक इपया इसे भी दंखें । तुरत कागज लौट आया, दिखा या, मिरा जाशय आपनि बाय पर आशप करता नहीं था । बवल सूचना तना था । मन लिख भेजा. बहुत बहुत आभार आपवा । मैं भी सुचना ही द॑ रहा था। हमारे पीच में बई सीदिया थी पा व कभी हमारे भाग वो वधघा नहीं बनी । प्रसिद्ध बंगाली डायर बटर जौर अभिनता श्री शन्भू मित्र उठी दिना नपन दल के साथ दिरनी आए हुए थ । उनके नाटकों की घूस थी 1? एक दिन महानिरेशव वा एक विचित्न सतेशा मिला उनका एक साटक शिवा बरक प्रसारित करो।' मैंन कहा. रंगमंच बा नाटक ध्वर्ति साटक मसे बतगा है उनपा सुधाव था. प्रयोग करके दखिए तो € गा ममिज्नन चैथवक सुग्रसिद्ध नाटक एनिवरसरी के आधार पर उगला मे श लिन वीं लोगयी बके प्रस्तुत किया था । उसी का मैंने रिवार्गर लिया । जादाशवाणी व वानानुकूलित स्टूडियो मे केवल जमिनता ही होत हैं पर वहां तो दगाक थे, बर्तिरित अभिरगता व पाश्व कर्मी थ । बह नाटक जय प्रमारिति हुआ, तय चित्र विचित्त ध्वनिया मे यीद मून नाटक थी आ मा खाज़े नहीं मितती थी । समीसक ने लिया रडिया नाटव कसा नहीं होना चाहिए, इसका यह सर्वोत्तम उदाहरण है। पर प्रयागघर्मों मायुर एसा टिप्पणियां से हता सह हो उठे ता साधर बस *ै उहान विशाप रूप मे श्री रमेश मेहता वा एक सारक आाकायाणी बे प्रामण उप सचस्थ वराया और वहीं से वह प्रसारित विया रया। बह प्रयोग एवं सीमा तब सफल हथा। फिर तो बस बाय मी मा सिलसिला चंस निकला । आज भा कभी बभी दावा को हर्पोलान चातावरण में गूज उदना है । मायुर लगभग सभी नारवा को सुनठ । उनपर चर्चा बरत ) प्रशसा अरन मे बरसी उतहोने बभी सही बी । फिर भी मुये लगता है बहू




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