तेलुगु और उसका साहित्य | Telgu & Usaka Sahitya

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Telgu & Usaka Sahitya by क्षेमचंद्र 'सुमन'- Kshemchandra 'Suman'श्री हनुमच्छास्त्री -Shri Hanumchchhastri

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श्री हनुमच्छास्त्री -Shri Hanumchchhastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ तेछगू श्र उसका साहित्य की श्रन्तबेंदी मैं फैलकर श्रपना शासन चलाने लगे । श्रारम्भ मैं उनकी भाषा निस्स न्देह कोई प्राझत विशेष थी । समय बीतने पर वह प्रान्त की देशी माषा से घुल-मिल गई श्रौर 'झांध्र' या “तेलुगु” कददलाने लगी । पुलिन्द तथा शबर श्रादि दूसरी जातियाँ झ्राज भी अशिक्षित दशा मैं पड़ी हुई हैं । इनमें से शबर जाति कुछ सीमा तक सम्य कहीं जा सकती है । ये मन्त्र और तस्‍्त्र-विद्याओओं में कुशल थे । प्राव्वीन संस्कृत-साहित्य में मी शाबर-मन्त्रों की प्रशस्ति है । झ्राजकल ये गंजाम श्रौर विशाखपट्णम्‌ जिलों मैं हैं । विवाह-प्रथा मैं श्राघुनिकता पाई जाती है । प्रेम के अनन्तर विवाह करना, विधवा-विवाह तथा तलाक. श्रादि श्राचार- व्यवहार इनमैं पाए, जाते हैं । इनकी कोई लिखित भाषा नहीं थी । हाल ही में स्वर्गीय गिडगु राममूर्ति पस्तुलु ने श्रथक परिश्रम करके इनकों लिपि श्र कोश की सिक्षा दी थी | इस वर्ग की दूसरी प्रधान जाति “नाग? है । ये इस प्रान्त के श्रादि- चासियों मैं से हैं । ये मुख्यतः सर्प की पूजा करते हैं । 'महदाभारत' में तो इनके बारे में कई .गाथाएँ प्रचलित हैं । ये शिल्प आदि कलाओं मैं पारंगत थे । सप-पूजा का प्रभाव आय जातियों पर भी पड़ा | श्राज दिन भी “नागुल- चविंति” नामक एक त्योहार ग्रांघ्र-प्रास्त की खियों के द्वारा मनाया जाता हैं। इस अवसर पर स्त्रियाँ निर्भीक भाव से साँपों की बाँबी के पास जा-जाकर उनको दूध पिलाती हैं । इस त्रत से यह आ्राशा रखी जाती हैं कि साल-भर तक उनके पुरुष, पशु और बाल-बच्चे साँपों से बचे रहें । : “केयिरन” की सहायता से विशेषतः तेलंगाना की . सम्यता पर प्रकाश पड़ता है । 'केयिरन” प्राचीन कब्रों को कहते हैं । इन क्रो से यह मालूम पड़ता हे कि प्राचीन काल में लोग मत श्रादमियों को ज़मीन के श्रन्दर मन्दिर- जेसा बनाकर उनमैं बिठा देते थे । ऐसे “केयिरन” तेलंगाना में कइं जगह प्राप्त हैं। इनसे यह लक्षित होता है कि हजारों वर्ष पहले ही यहाँ के लोग सभ्यता में बढ़ेज्चढ़े थे । ये लोग ऐसी जगहों में गाँवों का निर्माण करते थे जहाँ पानी श्रौर लकड़ी की अधिकता हो |




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