जैन साहित्य का बृहद इतिहास भाग ५ | Jain Sahitya Ka Brahat Itiyash Vol 5 Ac 4556

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Jain Sahitya Ka Brahat Itiyash Vol 5 Ac 4556 by अंबालाल शाह - Ambalal Shah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३६ ) सिएए, वििफिमधिएफड हा! के 98९3 लए, |, दिडनिददानाधिकरण ( 17 ०प्रिंफा 1िताएक 9018 ), घण्टारबाधिकरण ( 80पते हा 800प- 805 ), चक्रगत्यघिकरण ( १1०९5, पा 80 शा०30108 ) इत्यादि । छठे अध्याय में मुख्य अधिकरण है बामनिणयाघिकरण 2 €1:€१101108101071 0 हर०हा1 ) | प्राचीन मारत में मानचित्र ( 08]? ) बनाने में सानचित्र के ऊपर के भाग को उत्तर दिशा ( ०0७0 ) नहीं कहते थे । ऊपर की दिया उनकी पू्व दिशा होती थी । अतः वाई बोर या वामदिशा उत्तर दिशा कहलाती थी | दाक्ति उद्गमनाधिकरण ( 1.18, 0७67 एयर ), धूमयानाधिकरण ( फिक्स चापिस्लय रोज वात फोष्घात्थ , तारमुखाधिकरण ( 1'6165- एप 00. है, अंशुवादाधिकरण ( फि०क पाह्पाक 07 8१ 96क05 इत्यादि । इसम भी १२ अधिकरण वर्णित हैं । सातवें अध्याय में ११ अधिकरण हैं :<-- सिहिकाधिकारण ( एल प४ ), कूमाचिकरण . ( ठप ि01008 | वैध ९8 )--को जले उ“म्य: यस्य स कूर्मे । अर्थात्‌ कूर्म वह है नो जल में गतिमान हो । पुराने काल के हमारे विमान प्रय्वी और ज में भी चल सकते थे। इस विषय से सम्बन्ध रखने वाला यह अधिकरण हैं । माण्डछिकाघिकरण ( ए0ाधिएर ताप छुछएपतपाणाड , जलाघिकरण ( रिटनलाप्णा, पपे0पत छा8 (५0, के इत्यादि ) आठवें अध्याय में द-- ध्वजाधिकरण ( ४2018, एड है, कालाघिकरण ( है €09)1675, ए0९८0०१०७10छूष कै, विस्तृतक्रियाधिकरण ( ए०्र६०५011, सिस्‍21011 8४81 ९6 |, प्राणकुण्डल्यचिकरण ( काटा छूप 00115 उपलॉत्ठिा दाब्दाक्णाधघिकरण ( ठि0एश6 8050 पिं0फ, पिंडन्हा201ु छेह५0९5 पद हप00 छा रव0ा05 ), रूपकर्षणाधिकरण ( एप छाए क09071 6160 670ए08]2छ11 60 86810 ), प्रतिविम्बाकणाधिकरण ( उप 8 0जा 07 तलब छठ तेटप०८प्िं०0 ), ग्मागमाधिकरण ( रिलटां[ए008पि0घ 660. .




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