जैन साहित्य का बृहद इतिहास भाग ५ | Jain Sahitya Ka Brahat Itiyash Vol 5 Ac 4556
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१३६ )
सिएए, वििफिमधिएफड हा! के 98९3 लए, |, दिडनिददानाधिकरण
( 17 ०प्रिंफा 1िताएक 9018 ), घण्टारबाधिकरण ( 80पते हा 800प-
805 ), चक्रगत्यघिकरण ( १1०९5, पा 80 शा०30108 ) इत्यादि ।
छठे अध्याय में मुख्य अधिकरण है बामनिणयाघिकरण 2 €1:€१101108101071
0 हर०हा1 ) | प्राचीन मारत में मानचित्र ( 08]? ) बनाने में सानचित्र के
ऊपर के भाग को उत्तर दिशा ( ०0७0 ) नहीं कहते थे । ऊपर की दिया
उनकी पू्व दिशा होती थी । अतः वाई बोर या वामदिशा उत्तर दिशा
कहलाती थी |
दाक्ति उद्गमनाधिकरण ( 1.18, 0७67 एयर ), धूमयानाधिकरण
( फिक्स चापिस्लय रोज वात फोष्घात्थ , तारमुखाधिकरण ( 1'6165-
एप 00. है, अंशुवादाधिकरण ( फि०क पाह्पाक 07 8१ 96क05
इत्यादि । इसम भी १२ अधिकरण वर्णित हैं ।
सातवें अध्याय में ११ अधिकरण हैं :<--
सिहिकाधिकारण ( एल प४ ), कूमाचिकरण . ( ठप ि01008
| वैध ९8 )--को जले उ“म्य: यस्य स कूर्मे ।
अर्थात् कूर्म वह है नो जल में गतिमान हो । पुराने काल के हमारे विमान
प्रय्वी और ज में भी चल सकते थे। इस विषय से सम्बन्ध रखने वाला यह
अधिकरण हैं ।
माण्डछिकाघिकरण ( ए0ाधिएर ताप छुछएपतपाणाड ,
जलाघिकरण ( रिटनलाप्णा, पपे0पत छा8 (५0, के इत्यादि )
आठवें अध्याय में द--
ध्वजाधिकरण ( ४2018, एड है,
कालाघिकरण ( है €09)1675, ए0९८0०१०७10छूष कै,
विस्तृतक्रियाधिकरण ( ए०्र६०५011, सिस्21011 8४81 ९6 |,
प्राणकुण्डल्यचिकरण ( काटा छूप 00115 उपलॉत्ठिा
दाब्दाक्णाधघिकरण ( ठि0एश6 8050 पिं0फ, पिंडन्हा201ु छेह५0९5
पद हप00 छा रव0ा05 ),
रूपकर्षणाधिकरण ( एप छाए क09071 6160 670ए08]2छ11 60
86810 ),
प्रतिविम्बाकणाधिकरण ( उप 8 0जा 07 तलब छठ तेटप०८प्िं०0 ),
ग्मागमाधिकरण ( रिलटां[ए008पि0घ 660. .
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