छूत - अछूत | Chhoot Achhot

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Chhoot Achhot by श्री बैजनाथ केडिया - Shri Baijnath Kedia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छूत-अछूत पर्डितजी मेरे एक पांच सालका नाती है क्या उसे आपकेपास पढ़नेके लिये छोड़ जाऊँ ? गुरुजी उसकी यह बात सुनते ही कार्नोपर दाथ रखकर बोले-ना भाई! इन ऊंची जातिके बालकोंके साथ बैठकर तुम्ददाराद्रनाती कैसे पढ़ सकता है ? फिर उसे पढ़नेकी आवश्यकता! ही क्या है ?बड़ा होकर तुम्हारी तरह उसे भी तो यहीं मेहनत- मजदूरीका काम करना होगा ! गुरुजीकी यह नेक सलाह सुनके बेचारा बूढ़ा झपनासा मुंह लेकर घर लौट 'झाया और वहाँकी सब बातें सुखियासे कह सुनाई । सुखिया बोली--बाबा घसीटूको लेकर में कल गुरुजीके पास जाउँगी । मेरा घसीटू किसीसे भी कम साफ-सुधरा नहीं है। जो उसके साथ बैठनेसे दूसरे लडकोंका कुछ बिगड़ जाय गा । दूसरे दिन बड़े उत्साहके साथ घसीटूकी झगुली पकड़कर सुखिया परिडतजीकी पाठशालामे जा पहुंची, उस समय परिडत- जी एक 'झासनपर बैठे ल्ड़कॉको पढ़ा रहे थे । सुखियाने दाथ जोड़कर गिड़गिड़ाके कहा--गुरुजी महाराज । मेरे इस घसीटूको भी अपनी पाठशाला मे बैठा लीजिये । पणि्डितजीने कुछ नरमीके साथ पूछा--तुम कोन हो ? कहाँ रहती हो ? खुखियाने उत्तर दिया,महाराज । मैं सुमेरन चमारकी लड़की सात




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