समयसार प्रवचन भाग 15 | Samaysaar Pravachan (bhag - 15)

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Samaysaar Pravachan (bhag - 15) by महावीरप्रसाद जैन - Mahavirprasad Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महावीरप्रसाद जैन - Mahavirprasad Jain

Add Infomation AboutMahavirprasad Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
गाथा 3७६ ११ जीच दुसरेकी वात सही तो सुन नहीं पाते कि ये क्या कह रहे दें यह वात ठीक दौर से अन्ञानियोकों सुनाई नहीं देती है 'झौर छपनी छहपतताफे 'नुसार ये 'झर्थ लगा बेठते हैं । की तो दूसरे ने हैं निन्दा 'और मान बैठते हैं कि प्रशंसा की है । प्रशासाके सेषसें निन्दाफी परगघानी--जेसे कोई कहता है कि फ्लां सेठ साहचका क्या फहना है; चलफे 'चार लड़के हैं--एक मास्टर हे; एक ढावटर हैं, एक कलक्टर है छोर एक मिनिस्टर है । ऐसा सुनकर सेठजी खुश होते हैं कि इसने मेरी प्रशसा फी छोर की गई है इसमें सेठ जी की निन्दा कि सेठ जी के लड़के तो इतने भोह दो पर हैं और सेठ जी कोरे बुद्ध, हैं । इसी तरह किसी ने कट्टा कि देखो फलों सेठ जी की इवेली कितभी स॒न्दर हि। इसको सुनकर सेठ प्रसन्न होती है कि इसने हमारी प्रशंसा की छोर हो गई इसमें चिन्दा थाने ये जनाव ऐसे तीप्र मिथ्यादष्टि हैं कि इनके मकानकी कद त्वचुद्धि लगी है, ये यह मानते हैं. कि मेंने मकाल बनवाया, सो ये तो चेवकूफीका समर्थन फरने छाए है लेविस मानते हैं. कि इन्होंने मेरी स्तुति की है. झथवा कोई फ्सी प्रकार स्तुप्ति करे; लसमें दुसरे ने फेचल 'झपने 'मापमें बसी हुई ऋषायवकों ही प्रकट फिया हैं. '्ौर, कुछ नहीं किया | इसी तरदद ये छाज्ञानी जीव मानते हैं फि इसने मेरी लिन्दा की है । छरे दुसरेने तिन्‍्दा सहीं फी है या सो प्रशसा की है या ठीक रास्ते पर लानेके लिए शिक्षा दिया है; किन्ठ॒ यह थान्ञानी जीव छपनी फ़ह्पनाफे उन्नुसार अर्थ लगाकर रुण्ट होते हैं. । संसारके प्रयोग्य--किसी ने श्रगर फट दिया कि तू नालायक है तो इसे सुनकर तो से धन्यवाद देना याहिए । क्योंकि यह तो कह रहा है कि हभ जेसे बेवकूफोंकी गोछ्टी फे लायक सूनहीं हैं । सु तो सपस्थी; मो क्षमार्गी है; तू हम जेसे मोष्टी लोगोंके 'वीचमें रहने लायक नहीं । ऐसे नालायक तो मोक्षमार्गी जीव होते हैं' वे यहाँ रहने लायक नहीं हैं। यहाँसे 'वलफर मोक्षमें बिराजते हैं । पर यहाँ तो उसका थे यह लगाते हैं कि मेरी निन्दा फी अथवा किसी बातकों वोलकर कुछ 'झपराध भी चताता हो फोई तो वहीँ केवल वह शिक्षा दे रहा है; ठुम्द्दारा छीस क्या लिया ? निन्दकफी उपफारघीलता--सेया ! दूसरेफी निन्‍्दा करने पासे ने दूसरेकी तो की नरकसे रक्षा और खुद उसके एवजमें हद सरकमें बला जानेको) 'झ्पने को दुरगतिमें भेजनेफी तैयार हो गथा सो यह उसका कितना चढ़ा उपकार हे, पर उसको सुनफर ये श्ज्ञाती व्यामोद्दी जीघ ऐसा थर्थ लगाते हैं कि यह मुझको कहा गया है और ऐसा जानकर किसी वात पर रुष्ट होते हैं छोर किसी वात पर सतुप्ट हो जाते हैं; फिन्तु ऐसा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now