20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में इलाहाबाद का साहित्यिक योगदान | 20vin Shatabdi Ke Purvarddha Men Ilahabad Ka Sahityik Yogadan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(10 निकाल दी गई थी, इस अनामिका मे उसका कोई चिन्ह अवशिष्ट नहीं | यह नामकरण मैने इसलिए फिया कि उन्ही की स्मृति मे समर्पित करू | निराला की इस कृति मे एक से बढकर एक रचनाए सकलित है- प्रेयसी, मित्र के प्रति, दान, प्रलाप, खडहर के प्रति, प्रेम के प्रति, वीणा वादिनी, प्रगल्भ प्रेम प्रिया से, सच है, चुम्बन, अनुताप, तट पर, ज्येष्ठ, रेखा, विनय, उत्साह, वनवेला, नाचघे उस पार श्यामा, सरोज स्मृति, मरण दृश्य, खुला आसमान, अपराजिता, राम की शक्ति पूजा, नर्गिश आदि श्रेष्ठ कविताए इसमे सकलित है । इस कृति मे निराला ने सामाजिक दिद्रोह को बडी तीव्रता से उभारा है। अधिकाश रचनाए जीवन आस्था से सबधित है जिनमे अवरोधो के पराजय के प्रति एक प्रगल्भता फूट निकली है | निराला का स्वच्छन्दतावाद सशकक्‍्तता से आविर्भूत हुआ है। एक ओर सरोज स्मृति जैसी वेदना गाथा है जिसमे निराला का समाज के प्रति आक्रोश और आत्मग्लानि की अभिव्यक्ति है । वनवेला भी इसी मे है जिसमे सामाजिक विषमता पर केवल आक्रोश ही नहीं अन्तर्व्याप्त करूणा का प्रस्फूटन भी है । राजनीतिक प्रवचनाओ और विकृतियो के सकेत स्वर भी इसमे बडे मुखर है | निराला का जीवन सघर्ष का जीवन है और अनामिका की कवित्ताए उसकी अभिव्यक्ति । सरोज स्मृति के अत मे लिखा है- दुख ही जीवन की कथा रही | जिस तरह उत्तर राम चरित मे राम ने स्वय स्वीकार किया है कि दुख का अनुभव करने के लिए ही उन्हे चेतना मिली है - दु ख सवेदनामैव रामे चैतन्यामाहितम, उसी तरह निराला ने भी मानो स्वीकार किया है कि केवल दुख भोगने के लिए उन्हे जीवन मिला था। किन्तु जीवन सघर्ष की इस चोट को उन्होने हिन्दी का स्नेहोपहार समझकर सगर्व स्वीकार किया है - सोचा है नत तो बार बार, यह हिन्दी का स्नेहोपहार, यह नहीं हार सेरी, यास्वर यह रत्नहार - लोकोत्तर वर/श*




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