जयद्रथ वध | Jayadrath Vadh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.21 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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No Information available about मैथिलीशरण गुप्त - Maithili Sharan Gupt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अर्जुन-तर्नय अभिमन्यु तो भी अविचल रहा,
- उने सप्त रथियों का वहाँ लाघात सब उसने सहा ।
पर एक साथ प्रहमार-कर्ता हों चतुदंदा कर जहाँ,
युग कर कहो, क्या-क्या यथायश्र कर सकें विक्रम वहाँ ?
कुछ देर में जब रिपु-द्वारों से उसके गिर पढ़े,
तव कूद कर रथ से चला वह, थे जहाँ वे सब खड़े,
जब तक दारीरागार में रहते जरा मी प्राण हैं
करते समर से वीर जन पीछे कभी न प्रयाण हैं ॥।
फिर नृत्य-सा करता हुआ धघन्वा लिए निज हांथ में,
$ लड़ने लगा निर्भय वहाँ वह झुरता के साथ में ।
था यदपि अन्तिम दृद्य यह उसके अलौकिक कर्म्म का,
पर मुख्य परिचय भरी यही था वीर जन के घम्में का ॥1
मा | करे या नै पर शक
होता प्रविष्ट ज्यों... गजेन्द्रससूह में,
करने लगा वह शौर्य्य॑ त्यों उन वैरियों के व्यूह में 1... * «
तव छोड़ते कोदण्ड से. सब ओर
मार्तण्ड-मण्डल के उदय की छवि सिली उसको भली ॥।
यों विकट विक्रम देख उसका घै्य रिपु खोने लगे,
उसके भयंकर वेग से अस्थिर सभी होने लगे ।
हँसने लगा वह वीर उनकी धीरता यह देख के,
फिर यों वचन कहने लगा तृण-तत्य उनको लेख के
१. पर्वेत २. शरीररूपी घर 1
प्रचम सगे : १
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