चित्र मीमांसा के सन्दर्भ में अप्पयदीक्षित एवं पंडितराज जगन्नाथ के विचारों का समीक्षात्मक अध्ययन | Chitra Mimansa Ke Sandarbh Me Appyadixit Avam Panditraj Jagnnath Ke Vicharon Ka Sameekshatamak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
255
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
नागेन्द्र नारायण मिश्र -Nagendra Narayan Mishra
No Information available about नागेन्द्र नारायण मिश्र -Nagendra Narayan Mishra
राम किशोर शास्त्री - Ram Kishor Shastri
No Information available about राम किशोर शास्त्री - Ram Kishor Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुवलयानन्द पर लिखित *रसिकरअूजनी' नाम की टीका से टीकाकार गड़ाधर
बाजपेयी द्वारा अप्पय फो अपने पितामह के श्राताका शुरू बतलाया' जाना भी अप्पय को
ईसा की सोलहर्वीं शती के अन्तिम चरण से लेकर ईसा की सचत्रहवीं शती के प्रथम
चरण तक के काल को ही प्रमाणित करता है |
अप्पय दीक्षित, भट्टोजिदीक्षित और पण्डितराजजगन्नाथ ये तीनो सम सामयिक
थे। ऐसा काणे ने इस प्रकार सिद्ध किया है - /1५५$ ० 0८ चिद्र मीमासा 15 68160
5घाए08 1709 (0. 1652 - 53 & 09) पीएडार्डणि€, ७0 906. रसगड्गाधर 8710 प16
चित्र मीमासा खण्डन फ़र्€ ८०ए५0566 ०८णि€९ 1650 06 क्षील 1641 & 0 शत (िटए
2६ 1116 0000 0 8 एए80ा€ एए00 1फटार्टणि६ 1९6 1॥टााफ 801५1 0 व 8827108111
1165 0टॉफ़ट्टा। 1620 भाएं 1660 &..0 *
अप्पय दीक्षित द्रविण, भट्टोजिदीक्षित महाराष्ट्री और पण्डितराज जगन्नाथ
तैलड्ग ब्राहमण थे। तत्कालीन सामाजिक कट्टरता और रूढिवादिता के रहते इन
तीनो मे विरोध होना स्वाभाविक था।. इतना सब कुछ होते हुये भी पण्डितराज ने
अप्पय दीक्षित का उन्मुक्त हृदय से स्वागत किया है - द्रविण शिरोमणिणि , द्रविण -
पुगवै इत्यादि।
चित्रमीमासाखण्डनधिक्कार की रचना करके चित्र मीमासा खण्डन का उत्तर देने
वाले अप्पय दीक्षित के भातृपौत्र नीलकण्ठ दीक्षित के “'शिवलीलार्णव” से यह पता
चलता है कि इन्होने सौ ग्रन्थो की रचना की। दुर्भाग्यवश अप्पयदीक्षित की बहुत कम
कि विवि देव व व वि व. वि. व अब
१-... अस्मत्पितामहसहोदरदेशिकेन्द्र - रसिकरजनी
२-.... काणे - सस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास - २४८
३-- पडा एव 58580. 06105 - (8116
४-.. द्वासप्रति प्राप्य समा प्रबन्धाजूछतव्यघादप्पयदीक्षितेन्द्र - शिवलीलार्णव १-६
User Reviews
No Reviews | Add Yours...