मंजिल की ओर | Manzil Ki Or  

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Manzil Ki Or   by साध्वी रत्नत्रयी - Sadhwi Ratna Trayii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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टकारजरन सास विस टटटटनटरमाटनदत तक तु छ ते रे रा के रा हा ता रे हक के तह तक हुए हुक दा कु दुप् तक ते ढक यू तु हु सर हिवि दि वे दि ह इंदा दि की हु किये दिव वर्क इस व दे हा छा दि दि वि छिए ट्ंग ५िसें पे दि कि इन प्रवचनो के सपादन में हमें श्रीमानू चांदमल जी सा. बावेल, भीलवाडा वालों का एवं कविहदय डॉ. शशिकर जा 'खटका राजस्थानी' का हार्दिक सहयोग मिला, जिन्होंने सभी प्रवचनों को आध्योपान्त पढ़कर अपने सुझावों से हमें लाभान्वित किया है अतः: उनके प्रति हम हृदय से आभारी है । हमारी प्रार्थना को ध्यान मे रखकर श्री प्राज् स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजयनगर के प्राचार्य श्रीमानू सम्पतराज जी सा ढ़ावर्या ने ' भूमिका' लिखकर प्रबचनों के मर्म को स्पष्ट किया है, अत: उनके प्रति भी हम अपना आभार प्रकट करते हैं । प्रस्तुत प्रवचन-सग्रह को प्रकाश में लाकर सर्वजन-सुलभ बनाने के लिए मुम्बई निवासी श्रीमानू कंवरलाल जी सा सांखला की धर्मपत्नी श्रीमती सुशीलादेवी जी सांखला ने अपना अमूल्य आर्थिक सहयोग प्रदान किया एवं अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग किया अत: वे भी धन्यवादाह है- उनके प्रति हम अपनी कृतज्ञता प्रकट करते है । इसे अल्प समय में ही मुद्रित कर सुलभ बनाया, इसके लिए, निओ ब्लॉक एण्ड प्रिन्ट्स, अजमेर के मालिक श्री जितेन्द्रकुमार जी पाटनी को भी साधुवाद देना नहीं भूल सकते । उन्होंने निरन्तर परिश्रम कर इसे प्रकाशित किया है । आशा है कि पाठक प्रस्तुत प्रवचन-सग्रह से लाभ प्राप्तकर नैतिक जागरण की दिशा में आगे बढ़ेंगे - इसी विश्वास के साथ - मंत्री मुलाबपुरा श्री श्वे स्था जैन स्वाध्यायी संघ, दि 201 2001 गुलाबपुरा ४ ६ 6 तप कुछ हक 60 १2 हुक 6४ हुए हु? छह नेदव दम दम छा था छा छा घस न 8




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