अनुभूति का आलोक | Anubhuti Ka Aalok

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Anubhuti Ka Aalok by साध्वी रत्नत्रयी - Sadhwi Ratna Trayii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के के के के के के के के के $े के के के 3 $ के के के के के $े $ ३ अ > अनुभूति का आलोक ़् 1 लक कक हट सर हक 2 नमक । 1.13, श्रद्ा मे भज नवकार को (तर्ज - साजन मेरा ..................- 9 मानव भव यहाँ पाया हडि। प्रभु को तू ने क्‍यों भ्रुलाया है। तज दे सभी अब विकार को | अ्रद्धा से भजले नवकार को | देख किसे इतराया है। प्रश्नु को ....................... ॥ चौदह पूर्व का यह सार है। जपले उसी का बेड़ा पार है। किसका नशा तुझे छाया है। प्रक्य वो ६. ००००७५ ० नलतलर्ल स्जानजपक ॥ ह अक्षर पैंतीस पद पांच है। इसमें समाया सब सांच है। ना ध्यान हृदय में लाया है। प्रश्रु को शाम सुबह जाप करता जा। खुशियों से झोली भरता जा। जिनवर ने जण को जगाया है। पर प्रक्ष को ...... ५-०० २ूढ०० ०२० व | । मंत्र परमेष्ठी बड़ा प्यारा है । शव जपे उसी को इसने तारा है । . अवसर बड़ा ही शुभ आया है। £ प्रश्न को' ...-६-४-२--५३)०००३ न ॥ श्र “रत्नञ्जयी? करके वन्दना। त्रिर गई जगत से चन्दना। कर्मों का मैल क्‍यों बढ़ाया है। प्रभु को ..................--...- ॥ जा कक कक हल हज शक हज कर | 5 25... थे. हू. जे. आए का का. हा. आए आए. 3३.२2




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