विनोबा के जंगम विध्यापीठ मे | Vinoba Ke Jangam Vidhyapith Me
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र्भ्
'पचामृत', धार्मिक मनुष्य का विचार, चुनाव मे मेरी दृष्टि, « ....
पष्ट तथा स्पष्ट, डिक्टेफोन नही चाहिए, सुवर्णककणवत् विवततें
४५१ जय दास्भो ! जय सहावीर ! १३६-१४०
रतलाम का मन्दिर जैन श्रौर सनातनी
शू२. गीता १४०
धर्म का भ्रविरोधी काम झकराचाये का अर्थ, गीता के दो
विभूतियोग
प्३ सालथस का सिद्धान्त श४१-१४९
भ्४ बलिदान का श्राकषंण श्ष्र्
भ्ट दिवक्षा-पाठ १४ ३- १४४
६, जागतिक लिपि १४४-१४५
७. कणिका--£. श४प्-१४६
उ्भ्कार, एफ एफ टी , सत्तावन की समाप्ति
प्र, भगवान् बुद्ध र४्द-र्५्१
वेद-निदक , नारायण हमारी पसदगी की चीजे देता है, आत्मा ,
वासना-निर्वाण और ब्रह्म-निर्वाण , पुनर्जेन्म , षड्-दर्शन श्रौर ब्रह्म-
सुत्रभाष्य के श्रनुवाद , “षड्-ददयन' पर व्यग्यात्मक कविता , मूत्ति-
पूजा की कडी झालोचना , हिन्दुघमं का सर्वेधमे-समन्वय
श६. कणिका--१० श्र १-१४५४
पाच धरमे-तत्व , सवेज्ष और कवीर , हिन्दी-प्रचार 'घधघा' बन गया “
है, भ्राज्ञा मेरी रीति नही है, साने गुरूजी के बारे मे मेरी गलती
वाघिन का दूध पीकर क्रूर बने, घुमक्कडी करो, ब्रह्म ्ीर
ब्रह्मविदू , रामायण का रमणीयत्व , जिप्सी मेरे पैरो में प्रकट है
६०. जीवन का शास्त्रीय नियोजन श४५-१४७
६१. लौट श्राश्ो श५८-१४५९
घम्मपद हमारा ही ग्रथ, जैसा “'पुराण' वैसा 'कुराण', प्रवेश-
द्वार, सब धर्मों का अध्ययन वेदाध्ययन ही
थे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...