विनोबा के जंगम विध्यापीठ मे | Vinoba Ke Jangam Vidhyapith Me

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vinoba Ke Jangam Vidhyapith Me by कुंदर दिवाण -kundar diwann

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कुंदर दिवाण -kundar diwann

Add Infomation Aboutkundar diwann

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
र्भ्‌ 'पचामृत', धार्मिक मनुष्य का विचार, चुनाव मे मेरी दृष्टि, « .... पष्ट तथा स्पष्ट, डिक्टेफोन नही चाहिए, सुवर्णककणवत्‌ विवततें ४५१ जय दास्भो ! जय सहावीर ! १३६-१४० रतलाम का मन्दिर जैन श्रौर सनातनी शू२. गीता १४० धर्म का भ्रविरोधी काम झकराचाये का अर्थ, गीता के दो विभूतियोग प्३ सालथस का सिद्धान्त श४१-१४९ भ्४ बलिदान का श्राकषंण श्ष्र्‌ भ्ट दिवक्षा-पाठ १४ ३- १४४ ६, जागतिक लिपि १४४-१४५ ७. कणिका--£. श४प्-१४६ उ्भ्कार, एफ एफ टी , सत्तावन की समाप्ति प्र, भगवान्‌ बुद्ध र४्द-र्५्१ वेद-निदक , नारायण हमारी पसदगी की चीजे देता है, आत्मा , वासना-निर्वाण और ब्रह्म-निर्वाण , पुनर्जेन्म , षड्‌-दर्शन श्रौर ब्रह्म- सुत्रभाष्य के श्रनुवाद , “षड्-ददयन' पर व्यग्यात्मक कविता , मूत्ति- पूजा की कडी झालोचना , हिन्दुघमं का सर्वेधमे-समन्वय श६. कणिका--१० श्र १-१४५४ पाच धरमे-तत्व , सवेज्ष और कवीर , हिन्दी-प्रचार 'घधघा' बन गया “ है, भ्राज्ञा मेरी रीति नही है, साने गुरूजी के बारे मे मेरी गलती वाघिन का दूध पीकर क्रूर बने, घुमक्कडी करो, ब्रह्म ्ीर ब्रह्मविदू , रामायण का रमणीयत्व , जिप्सी मेरे पैरो में प्रकट है ६०. जीवन का शास्त्रीय नियोजन श४५-१४७ ६१. लौट श्राश्ो श५८-१४५९ घम्मपद हमारा ही ग्रथ, जैसा “'पुराण' वैसा 'कुराण', प्रवेश- द्वार, सब धर्मों का अध्ययन वेदाध्ययन ही थे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now