ज्ञानगंगा | Gyanaganga

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Gyanaganga by लक्ष्मीचन्द्र जैन - Laxmichandra jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ अबल अक्लते काम लिया तो आदमी संकटसे पार हो जाता है; बेवकफीसे काम लिया तो अफतमे फँस जाता है । - योगवाशिष्ट अकस्मात्‌ पहले एक बुनियादी बात बता हूँ कि ईश्वरके नजदीक इततिफाकनू, अकस्माती तौरपर, कुछ नहीं होता । - लौंगफैछ़ो अति अति दानसे दरिद्रता और अति लोभसे तिरस्कार होता है । अति नाशका कारण हैँ । इसछिए अतिसे सर्वदा दूर रहे । ( “अति सर्वत्र वर्जयेतू ) । - शुक्रवीति अतिक्रम जो सज्जनोका अतिक्रम करता हैं उसकी आयु, सम्पत्ति, यश, धर्म, पुण्य, भाशिष, श्रेय ये सब नष्ट हो जाते है । - भागवत अतिथि ह/सच्ची मंत्रीका नियम यह है कि जानेवाठे मेहमानको जल्दी रुख़सत करो और आनेवाढेका स्वागत करो । - होमर अद्ढेत हे अजुन, इस ज्ञानका आश्रय लेकर मेरे स्वरूपको प्राप्त कर लेनेवाले प्रलय- से कभी नहीं घवराते । * श्रीकृष्ण न




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