नव भारत के चंद निर्माता | Nav Bharat Ke Chand Nirmata

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Nav Bharat Ke Chand Nirmata by काका साहब कालेलकर - Kaka Sahab Kalelkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भौतिक ज्ञानोपासना और सामाजिक सुधार के भूपर नहीं था । अगजों का और भअग्रेजी विद्या का असर तो अन्नीसवी सदी के प्रोरम्भ से ही हमपर हो रहा था । लेकिन हम कह सकते है कि सारे राष्ट्र का जीवन- परिवतन तो १८५७ के बाद ही शुरू हुआ । हमारा धर्म, सनतो का कार्यें, अुद्योग-हुनर की प्रगति, कलाओ का विकास और साहित्य-सम्पदा सब कुछ होते हुअ भी हमारा राष्ट्रीय जीवन असगठित, दुबल और क्षीणवीयं॑ साबित हुआ । तीस चालीस बरस हम करीब-करीब किंकत्त॑व्यसुढ हुओ थे । अग्रेजी विद्या, सस्क़ृत विद्या और अरबी-फारसी मे ग्रथित जिस्लामी सस्कृति--सबका मुल्याकन करना हमारे लिखे आवद्यक मालूम हुआ । पुरानी सस्कृति का पुनरुलजीवन करनेवाला अुद्धारक पक्ष और पुरानी बाते निसत्त्व हो गयी है ऐसा समझकर अच्छी चीजे जड़ाँ से मिले वहाँ से लेकर जीवन मे नया चेतन्य लाने की सिफारिश करनेवाला सुधारक पक्ष --दोनो के बीच काफी सघ्ष चला । अक ओर ब्रह्म-समाज और दूसरी ओर आर्य-समाज, दोनो विशाल जनता को अपनी ओर खीचते रहे और दोनो तरफ छाक की निगाह से देखनेवाला सनातनी समाज पुरानी बातो का समर्थन करने में असमर्थ साबित हुआ । आरयंसमाज मे भी मास पार्टी और घास पार्टी, गुरुकुल वाले और डी० अ० बी० कालेजवाले अँसे दो पक्ष हु । असी परिस्थिति में धर्मानुभव की बुनियाद पर सस्कृति मे नवजीवन लाने की, दिक्षा मे राष्ट्रीयता दाखिल करने की और अुद्योग-हुनर के द्वारा आर्थिक अवदशा दूर करने की अंक सर्वागीण जाशति का देश मे अदय हुआ । अुसके अग्रिम दूत थे, स्वामी विवेकानन्द । अमेरिका जाने से पहले भुन्होने सन्यासी के वेश मे सारे देश का भ्रमण किया था । अन्होने परिस्थिति का गहरा निरीक्षण और परीक्षण भी किया था । भुद्धार का मार्ग अुन के सामने स्पष्ट था । अुन्होंने देखा कि जिस समाज ने और राष्ट्र ने आत्मविद्वास खोया है अस के दर




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