छायावाद का सौंदर्यशास्त्रीय अध्ययन | Chhayawad Ka Saundarya Shastriya Adhyayan

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Chhayawad Ka Saundarya Shastriya Adhyayan by कुमार विमल - Kumar Vimal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छायावादी कविता : ललित कलाओं का तात्तविक मिश्रण, विशेषकर काव्य, चित्र और संगीत को परस्पर निकट लाकर उनके कुछ प्रमुख तत्त्वों का अधिकतम एकीकरण स्वच्छव्दतावाद (रोमाण्टिसिज्म) की एक विशिष्ट प्रवृत्ति है। अतः स्वच्छन्दता- वादी प्रकृति से निकट पड़ने के कारण छायावादी कविता में भी काव्येतर ललित कलाओं के तात्त्विक समावेश की विशेष रुचि है । जव-कभी काव्य-जगत्‌ में स्वच्छन्दतावादी लहर चलती है, तब उसमें ललित कलाओं का मधुमेल छा जाता है । सच तो यह है कि काव्य ही नहीं, सभी कलाएँ अपने रोमाण्टिक युग में अन्य भगिनी कलाओं से अधिक प्रभावित रहती हैं । फलस्वरूप, स्वच्छन्दतावादी (रोमाण्टिक) युग की कविता भी काव्येतर कला के प्रमुख तत्त्वों और विधाओं को अपनी सीमारेखा में समाविष्ट करने की विशेष प्रवृत्ति रखती है । इसलिए प्रस्तुत अध्याय में छायावादी कविता की सामान्य पीठिका इस रूप में प्रस्तुत की जा रही है कि छायावादी कविता में व्याप्त कला-संगम' की प्रवृत्ति तथा सौन्दयंशास्त्रीय अध्ययन के लिए अपेक्षित, काव्येतर कलाओं के साथ इसके तात्त्विक अन्तःसंबंध का उद्घाटन हो सके । इस उद्देश्य की सिद्धि के लिए यहाँ समाजशास्त्रीय, काव्यशास्त्रीय, मनो- वैज्ञानिक अथवा अन्य एतादृश दृष्टियों को छोड़कर छायावाद का अध्ययन केवल पाँच दृष्टियों से किया जाएगा-- १. छायावादी कवियों के द्वारा कविता में काव्येतर ललित कलाओं के पारस्परिक अन्त:संबंध की सिद्धान्ततः: स्वीकृति । २. रोमाण्टिक प्रवृत्ति की दृष्टि से छायावाद । ३. यूरोपीय साहित्य, विशेषकर, भंग्रेज़ी कविता का रोमाण्टिक आन्दोलन और छायावाद । ४. इस तुलनात्मक दुप्टि से छायावाद की निजी विशेषताएँ, प्रधानतः छायावाद की पृष्ठभूमि में काम करनेवाली स्वदेशी सांस्कृतिक अन्तर्धारा । ५. व्यावहारिक धरातल पर विभिन्‍न ललित कलाओं, विशेषकर काव्य, चित्र और संगीत के तात्विक अन्तःसंबंध की दृष्टि से छायावाद ।




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