तुलसी साहित्य की भूमिका | Tulsi Sahitya Ki Bhumika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ राम की शरण ली ।*० परन्तु मददामारी का प्रकोप न घटा और स्वयम्‌ तुलसी को उसका लक्ष्य बनना पड़ा ।* अब कवि को अपनी पड़ी उन्होंने अपने रोग निवारण के लिए भूतनाथ, हनुमान आदि सभी देवताओं से प्रार्थना की २९ हनुमान जी ने उनकी सुन ली श्औौर वह सृत्यु के घाट उतरते उतरते बचे ।२० परन्तु जान पढ़ता है यह महासारी पीड़ा तुलसी की अन्तिम बिमारी नहीं. थी । उन्हें एक॑ दूसरे ही रोग से प्राण छोड़ने पड़े । तुलसी ने इस रोग का विषद बणुन किया है। तुलसी-साहित्य में. इतने नुभूतिपूरण, सरल; तीव्र और कारुणिक छन्द कहीं नहीं मिलेंगे जितने इस बीमारी के अवसर पर तुलसी ने लिखे । जान पड़ता है. कि पहले यह रोग बाहुमूल में पीड़ा के रूप में प्रगट हुआ और तुलसी ने समभा लनरकसपिलेडरचकियार कक सका नए अनरगगिणण' २७--रोष महामारी परितोष, महतारी, दुनी देखिये दुखारी मुनि-मानसी-मरालिके हि कि. ( पार्वती से-+्कविता ० ) पाहि रघुराज पाहि कपिराज रामदूत रामहू की बिगरी तुद्दी सुधारि लई है । ( हनुमान से--वही ) हाहा करे तुलसी कासी की कद्थना कराल कलिकॉल की | ( राम से--वहीं ) श्८--झमियूत बेदन विषय हरते भूतनाथ तुलसी विकले पाहि प्चत कुपीर हों (बह्दी ) २६--देखिये कवितावली | ३०-खायो हुतो कुरोग ठुलसी राढ़ शंकसनि केसरी किसोरि राखे बीर बस्श्ाई है ( कवितावली )




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