पिछड़ी अर्थव्यवस्था का विकास नियोजन | Pichhadi Arthavyavastha Ka Vikas Niyojan

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Pichhadi Arthavyavastha Ka Vikas Niyojan by धर्मवीर सिंह - Dharmavir Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय । संकल्पनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत अध्ययन का शोध विषय पिछड़ी अर्थव्यवस्था का विकास- नियोजन |सोनभद्र जनपद का विशेष अध्ययन] न केवल राष्ट्रीय अपितु अन्तर्राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गया है । उपर्युक्त शोध विषय मानव समाज के लिए एक समस्या बन गयी है जिसके समाधान हेतु अनेक स्तरों पर अनुसंधान, प्रयोग, सर्वेक्षण, अन्वेषण तथा नयी-नयी योजनाओं का निर्माण एवं क्रियान्वयन किया जा रहा है । यह समस्या न केवल वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों; राजनीतिज्ञों व प्रशासकों के लिए वरन भूगोलविदों के लिए भी चिंता का विषय बन गया है । पिछड़ी अर्थ व्यवस्था व ग्रामीण अर्थव्यवस्था एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और बेरोजगारी की समस्याओं को खंडों में हल नहीं किया जा सकता । इसे तो समग्र रूप में ही सुलझाना होगा ।' इस शताब्दी के प्रारम्भ तक कृषि उत्पादन और उसे मिलते-जुलते क्षेत्रों , जैसे पशुपालन, डेयरी, वन, मत्स्य-पालन के विकास और मानवीय सुविधाओं जैसे पीने का पानी, सड़क, स्कूल, अस्पताल, गाँवों को विद्युत आदि की सुविधा उपलब्ध कराने को ही विकास माना जाता था । आधुनिक समय में विकास के मानदण्डों में वृद्धि होने के बावजूद उपर्युक्त आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराने का कार्य बरकरार है । वास्तव में विकास की अवधारणा दिग्भ्रमित हो गयी है । स्मिथ” ने विकास की समस्या को विश्व की सबसे महत्वपूर्ण समस्या माना है । विकास के तीन स्तर अविकसित , विकासशील व विकसित काफी प्रचलित हैं किन्तु इसमें कोई स्पष्ट भेद नहीं है । इस प्रादेशिक असमानता को दूर करने के लिए संतुलित नियोजन का निर्माण एवं उसके क्रियान्वयन की आवश्यकता है । विभिन्‍न क्षेत्रों के विकास हेतु उसकी भौगोलिक पृष्ठभूमि के अनुरूप विभिन्‍न विकास-योजनाओं की आवश्यकता होती है । प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य ध्येय पिछड़े क्षेत्रों की पहचान कर उसके लिए नियोजन की एक नीतिगत व्याख्या प्रस्तुत करना है ।




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