पिछड़ी अर्थव्यवस्था का विकास नियोजन | Pichhadi Arthavyavastha Ka Vikas Niyojan

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Pichhadi Arthavyavastha Ka Vikas Niyojan  by धर्मवीर सिंह - Dharmavir Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सापेक्षिक धारणा है, क्योंकि इसमें वर्तमान की तुलना भूतकाल की परिस्थितियों से की जाती है | इसके साथ ही एक निश्चित सामान्य पैमाने पर परिवर्तन का मूल्यांकन भी किया जाता है । अत. प्रासंगिक तुलनाओं से ही प्रगति का सही अनुमान हो सकता है । मूल्यांकन की कसौटियोँ आर्थिक , तकनीकी प्रगति, सांस्कृतिक लक्षण, गुण, और मानसिक विकास है । तकनीकी प्रगति सरलतम कसौटी है । उदाहरण के लिए इसमे मुद्रा अर्थव्यवस्था ओर संचार व्यवस्था को सम्मिलित किया जाता है । परन्तु प्रौयोगिकी ओर सांस्कृतिक या सामाजिक विकास के बीच निकट का सम्बध हे । उां के कुल उत्पादन ओर समाज के रूपान्तरण को प्रगति के मूल्यांकन का एकमात्र आधार नहीं माना जा सकता । एेसे मतं के अनुसार सांस्कृतिक प्रगति प्रौयोगिक परिर्तन की तुलना मे गौण मानी जाती है । वास्तव मँ किसी एक क्षेत्र मैं परिवर्तन या प्रगति दूसरे क्षेत्र से सम्बन्धित है और उस पर निर्भर भी है । अतः परिवर्तन एक जटिल प्रवटना है ।4 प्रगति की अवधारणा की तरह विकास की अवधारणा में भी वांछित दिशा मे परिवर्तन की ओर संकेत है । विकास की अवधारणा एक नूतन प्रघटना है , जबकि प्रगति की अवधारणा प्रबोध और औद्योगिक क्रान्ति से जुड़ी हुई है । विकासं की प्रकृति संदर्भात्मक और सापेक्षिक है । प्रगति की प्रकृति सामान्य है. और औचित्यात्मक कारकों पर आधारित है । वांछनीय दिशा में नियोजित गुणात्मक परिवर्तन लाने के उपाय को विकास कहते हैं । विकास की धारणा सामाजिक - सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तथा राजनैतिक ओर भौगोलिक परिस्थिति के आधार पर प्रत्येक क्षेत्र में भिन्न-भिन्न पायी जाती है । विकास एक संमिश्र अवधारणा है । क्षेत्र के विकास में कृषि, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन्‌ एवं संचार आदि विभिन्‍न क्षेत्रों में मति को गिना जाता है । विकास में समाज के कमजोर वर्गों: , स्त्रियों और बच्चों , बेरोजगारों , बीमार और वृद्ध लोग तथा अल्पसंख्यकों के कल्याण को भी सम्मिलित करते हैं । विभिन्‍न नीतियों और कार्यक्रमों का उद्देश्य ग्रामीण और




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