शांतिपथ | Shanti Path
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
चिदानंद जी महाराज - Chidanand ji Maharaj
No Information available about चिदानंद जी महाराज - Chidanand ji Maharaj
श्री कुन्द्कुंदाचार्य - Shri Kundkundachary
No Information available about श्री कुन्द्कुंदाचार्य - Shri Kundkundachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६
पुर पिता पर श्ररि सम टूटे, चाहे यह मर जावे ।
पिता पत्र पर रुप होथ कर, परसे दूर कराये ॥।
माई भाई लड़त स्वान सम, हैं प्राखन के लेवा ।
धार कपाय उपाधि मचाव, हैं दोऊ दुश्खदेवा ॥१३॥
विधवा नारी पति बिन दुखिया, बिन नारी पतिकोई ॥
इक बाला का बृद्ध पती हो, दुखित अति मन होई
इष्ठ मित्रका होय बिछोहा, शोक करत तन छोजे ।
बाल अनाथ न कोउ सहाई, किसका आश्रय लीजे ॥१४॥
कुल कुडम्बके लोग स्वा्ों, स्वारथ बस दुख देवें।
दाव लगे पर घन संपत्ति कया, प्राणन तक हर लेवं ॥
नृप झन्यायी सब धन छीने, अत्याचार करी हे।
बन्दी गृह में डार मार कर, सम्पति सर्व हरे है ॥ १५ ॥
धम नाम पर लड़त अयाने घन लूटें अघतापी ।
मार छेदकर प्राण लेत हर, रक्त बहांवे पापी ॥|
न्यायासन पर बैठ करे अन्याय, घूस कोई लेवे।
दोषीको निर्दोष बतावै, दण्ड सुजन को देवे ॥ १६ ॥
मारे भूटे चोर ठुटेरे, स्याल ब्याल डरपावे ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...