आराधना - कथाकोश | Aaradhana - Kathakosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
471
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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तदाकर्ण्यकलड्वार्यः कोपत: किल संजगी ।
कियन्मात्रो बराको&य॑ सच्श्रीयैन्मया समम् ॥ ८४ ॥
वाद कत्तु समर्थों न सुगतोपि मदोद्धतः ।
इति प्रव्यक्तसद्वाक्यैस्तां सन्तोष्य समग्रघी: ॥ ८४ ॥
सड्धश्रीवन्दकस्योचैद॑त्वा पत्रं महोत्सवै: ।
सम्प्राप्त: श्रीजिनेन्द्रस्य मन्दिर दर्ममन्दिरम् ॥ ८६ ॥
सडझश्रिया तदालोक्य पत्र क्षुमितचेतस: ।
तन भिनं महापत्रं श्रत्वा तद्रजनाक्रमम् ॥ ८७ ॥
तदाकलडूदेवोड्सौ हिमशीतलभूमुजा |
सम्प्रमेण समानीय वाद तेनैव कारित: ॥ ८८ ॥
सड्श्रिया महावादू तेन सार्घ प्रकुवता ।
नाना प्रत्युत्तरैद्रा तस्प वारबिभवं नवसू ॥ ८९ ॥।
अडाक्ति चात्मनो ज्ञात्वा ये केचिद्वौद्धपण्डिता: |
देशान्तरे स्थिता: सर्वास्तान्समाहूय गार्वितान् ॥ ९० ॥|
पूर्वसिद्धां तथा देवीं ताराभगवतीं निदि
तदावताय॑ तेनोक्त॑ समर्थोडहं न सुन्दरि ॥ ९१ ॥।
वाद कर्चुमनेनैव साथ देवि तया ड्ुतम् ।
एप वादेन कतैव्यो निम्रहस्थानभाजनम् ॥ ९२ |)
इत्याकर्ण्य तया प्रोक्त॑ सभायां भूपतेमया |
अन्त:पटे घटे स्थित्वा विवाद: क्रियते पुनः ॥ ९३ ॥
ततः प्रभाते भूपाग्रे सझ्झश्री: कपटेन च ।
अन्त:पटेन कस्यापि मुखं चापश्यता मया ॥ ९४ ॥
विचित्रवाक्यविन्यासैरुपन्यासो विधीयते ।
इत्युक्त्वाडन्तःपट॑ दृत्वा बुद्धदेवाचन तथा ॥| ९५ ॥
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