बृहदारण्यकोपनिषद्भाष्ये | Brihadaranya Kopanishd Bhashye

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अवपातनिंका ॥ (दे) रीता।खलु वदवः तो न सपा नःच नियता मानदी क्रिया । झस्वी भावकान्यपि' कर्स्माणि भ्रन्नुष्ठीयसते मानवजात्या । तथयथा-दिवास्वापों राजिनागरणुमू ।' स्वल्पें दयसि परिग्रह्ग्रहणम्‌ । बढ्लीनां ख़ीसामिकेन पुरुपेणावरोध। । झतिभ- यह्रः पुर्नीवधः । सतीदाह। । भर्वादिपतनमर्निप्रवेश+ । घ्राह्मणादिजातिनेद! । इत्येवेधिर्ष बहु खभावपिरोश्यपि इटादभ्यासेन स्वाभाविकीकतमस्ति । स्वृभुन- वलोन जगदरशीवारणचेष्ठा । स्वजातिवधाय लक्षश सैन्यस्थापनमू । इतरान: दरिद्रीकृत्य स्वाथ॑सिद्धये वहुलरालंना-परिच्छद-चतुरइसेना-मासादो-घाननट चिट्-घूतादि-पालनपिस्वेवंदिष॑सर्वमनावश्यकमेत्र । श्रतो ब्रूमी मजुष्याणां चेछा बह्दी नियत झनावरियकी भरस्वाभाषिफीच ।. इत्यमू उभे चेंट्रे हु मदन्तरें सूचयतः । नहि सर्वान स्ववन्धूतुच्छेछुं मयतमानों हृष् कब्रिच्छादूंलः । मनुष्यस्तु तथा. हृप्ट । शूयते क़िल. परशुसमों निखिलानि. परन्तु इसके विपरीत 'बहुत हैं । इस हेतु मनुष्यों की क्रिया समान और नियत: नहीं है और अस्वाभाविक कस्में भी मनुष्य करता है, जेसे-दिवा स्वाप, रात्रि जागः रण, थोड़ी ही चयोवस्था में स्रीप्रण | अर्तिभयक्र महाधोर पुन्नीबधरूपकर्म, सर्तीदादद, पवत्त पर से गिरकर मरना, अग्निप्रवेश, मनुष्यों में ज्रा्मणादि जातिभेद्‌ इत्यादि ९ खभाव विरोधी कर्म हैं । तथापि यें स्वाभाविक बना छियें गये हैं। मनुष्योंकें अनावश्यक कार्य भी बहुत हैं, जैसे-अपने भुजवल से जगत्‌ को बच में. फरने के छिये चेप्टा करनी | अपनी ही जाति के वध कें छिये छाखों सेना स्थापन | दूसरों को द्रिद्रबनाकर खार्थसिद्धि के िये बहुतसी खियां, नख, चतुरज्ञसेना, मासाद उद्यान, नटबिट धूतौदिकों का प्रतिपाठन इत्यादि २ झ्नावश्यक हीं हैं |! इस हेतु कहना पढ़ता है कि मनुष्य की चेष्टा श्नियत, अस्वाभाविक और झानावश्यक भी : होती है । इस श्रकार ये दोनों चेष्टाएं ( मनुष्य की और अन्य जीवों की चेष्टा ) बहुत अन्तर रखती क्योंकि कोई भी शादूंढः सकछ निज' बन्धुमों के नाश करने का प्रयरन करता हुआ नहीं देखता । परन्तु मनुष्य में ऐसी ठीछा है | सुना जाता है कि परशुराम ने निखिल, छव्रियकुछों को. मूखें से उखा-




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