जाति निर्णय | Jati Nirnay

Jati Nirnay by शिवशंकर जी - Shivshanker Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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* भूसिका + १६४ चाट लिप लय सथपनथसथन, “नटनटटोटेरे नए टन लय पथ में एक दी जाति है तो इन के व्ययसाय और कस्मे भिन्न २ कैसे हुए और 'चाहणा5स्य सुखमासीत्‌' का कया अर्थ होगा ? घम्सैशास्त्र और पुराणादि के सब ही ग्रन्थ कहते हैं कि सुख से ब्राह्मण की, वाइु से क्षत्रिय की, ऊरू से वैद्य की अर पैर से शूद्र की उत्पात्ति लि है।इस की क्या गति होगी £? इस महती भादाका की निश्चत्ति के हेतु १५० से अधिक पृष्ठ लिखे गए हैं प्रथम अनेक प्रमाणों और युक्तियोँ से चेद का यथाशे अर्थ कर के सन्वादि धघम्म छाख्रीं की संगनि लगाते हुए सिद्ध किया गया हैं कि मनुस्खूति, सदहाभारत, रामायण, भागवत विष्णुपुराण आदि कोई भी अ्रन्थ दूह्मा के मुखादिक अड् से दाह्मणादिक की उत्पात्ति नहीं मानत | इस की सिद्धि के हेतु उपर्युक्त सब ग्रन्थों से रष्रिप्रकरण दिखलाया गया है, और उसकी समीक्षा की गई हे । ८-मन्नु ओर मजापति-- इसी सष्टि प्रसज्ञ में मजु भोर प्रजापतियों के विपय में मिन्न २ रोचक मत प्रदर्शित किये गए दें मजुस्टति (प्र० २३६) के अज्ुसार ब्रह्मा के पु्र विर।द्‌ और विराट के पुत्र मनु हैं और पजा- पतियों की संख्या १९ है। पु०प्र० २४८ से मद्दाभारत के अनुसार ज्रह्मा के पुत्र मरीचि, मरीचि के कथ्यप, कद्यप के पुत्र आदित्य और आदित्य के पुत्र मनु हैं और ग्रज्ञापतियों की सख्या करी ६, कर्दी ७ गौर कहीं २७ हे । (पूृ० ९५७) रामायण के अनुसार पफ़ स्थल में मनुजी महाभारत के समान हैं;




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