कृष्णभक्ति काव्य में सखीभाव | Krisna Bhakti-kavya Mein Sakhibhava
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
860
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शरणबिहारी गोस्वामी - Sharan Bihari Goswami
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
नज के कृष्णभक्ति-सम्प्रदायों की उपासना-पद्धति का मूलाधार
'रस' है, जिसे ब्जरस, उप्ज्यल रस; रसोवासना आदि शब्दों सं
ठ्यवद्दत किया जाता है | दार्शनिक शब्दावली में इस रस-द्शन के
विधायक तत्त्त्र थी अन्य दर्शनों से प्रथक “प्रेम त्तत्त' पर आश्रित हैं ।
ग्रजभक्ति के प्रवर्तंक महानुभावों का ध्यान दार्शनिक दृष्टि से वेदान्त के
व्याख्यान पर न होकर उसके ताह्विक ऐक्य पर केन्द्रित था, इसलिए
दर्शन की जटिलता से बच कर इनका ध्यान मुख्यतः प्रेम और प्रपत्ति
पर ही रहा । यही कारण है. कि साम्प्रदायिक घरातल पर प्रथक् होने
पर भी 'राघाक़ृष्णः के उपासना-सूत्र द्वारा श्रज के भक्ति-सम्प्रदाय
एक सूत्र में अनुस्यूत लगते हैं. ।
त्रजभक्ति के उन्नायकों में महाप्रभु कृष्ण चैतन्य; बल्लमाचाय;
निम्बाकोचाये; स्वामी हरिदास और गो० हितहरिवंश का विशिष्ट स्थान
है । इनमें महाप्रमु कृष्ण चेतन्य के अतिरिक्त सभी आचार्यों का न्रज-
भूमिवास निश्चित है। बल्लभाचाय भी गोबधघन में कुछ समय तक रहे
थे और वहां रहकर उन्होंने लीलागान की परम्परा स्थापित की थी |
निम्बाकौचाये का समय अनिर्णीत होने पर भी यह निर्णीत है कि
दाश्चिणात्य होने पर भी उनका अधिक समय ब्रज में ही व्यतीत हुआ
था! स्वामी हदरिदास ओर हितहरिवंश तो अपनी युवावस्था में ही
वृन्दावन घाम में आ गये थे और आजीवन यहीं रहे । फलतः इन सभी
महात्माओं की भक्ति-पद्धति में घ्जरस की प्रधानता बनी रही और इसी
को उन्होंने अपनी भक्ति का मेरुदण्ड बनाया |
प्रेमलक्षणा भक्ति या रसोपासना के मूल बीज का संघान करने
वाले विद्वान उसे बेदिक वाड्यय से खोजने का प्रयन्न करते हैं किन्तु
User Reviews
No Reviews | Add Yours...