मरणोत्तर जीवन | Maranottar Jiivan

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पंडित द्वारकानाथ तिवारी - Pandit Dwarkanath Tiwari

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स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्या आत्मा अमर हे का अटूटे सम्बन्ध अन्तजेगत की. नित्यता से है। और चाहे विश्व के विषय में वह. सिद्वान्त-- जिसमें एक को नित्य और दूसरे को अनित्य बताया गया है--वह सिद्धान्त क्तिना ही गयुक्ति-संगत क्यों न दिखे, ऐसे सिद्धान्तवाले को स्त्यं ही अपने ही. शरीर रूपी यंत्र में पता चल जायेगा. कि ज्ञानपूर्वक क्या हुआ एक भी ऐसा काय सम्भव नहीं है जिसमें कि आन्तरिक और बाह्य संसार दोनों की नित्यता उस कायें के प्रेरक कारणों का एक अंश न हो । य्यपि यह विठकुठ सच है कि जब मनुष्य का मन अपनी मर्यादा के परे पहुँच जाता है तब तो वह इन्द्र को अखण्ड ऐक्य में परिणत हुआ देखता है। उस असीम सत्ता के इस ओर सम्पूर्ण बाह्य संसार---अर्थात्‌ तरह संसार जो हमारे अनुभव का विषय होता है--- उसका अस्तित्व विषयी (ज्ञाता ) के छिये है ऐसा ही जाना जाता है, या केवल ऐसा ही जाना जा सकता है । और यही कारण है कि हमें विषयी के विनारा की कल्पना करने के पूरे विषय के विनारा की कल्पना करनी होगी । यहाँ तक तो स्पष्ट है। परन्तु कठिनाई अब इसके बाद होती है। साधारणत: मैं स्तरय॑ अपने को देह के सिवाय और कुछ हूँ ऐसा सोच नहीं सकता | मैं देह हूँ यह भावना मेरी अपनी नित्यता की भावना के अन्तर्गत है, परन्तु देह तो स्पष्ट ही उसी तरह अनित्य है जैसी कि सदा परिवर्तनशील स्वभाव त्राठी समस्त प्रकृति |. तब फिर यह निव्यता है कहाँ न




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