हमारी सभ्यता और विज्ञान कला | Hamari Sabhyata Or Vigyan Kala
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
मनोहरलाल गौड़ - Manoharlal Gaud
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हंसराज अग्रवाल - Hansraj Agrawal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४ )
आर प्राय बाहर से श्राए-एक राजनीतिक चाल है । पर यह विष्वसनीय
बात नहीं मालूम पड़ती । हां इसके मनोवेज्ञानिक कारण मानने में किसी
को भ्रापत्ति ही क्या हो सकती हे ? श्रस्तु--अब फिर भारतीय सभ्यता
के विद्लेषण का नया ध्रध्याय प्रारम्भ हुम्रा । जो भी साहित्य विद्वानों के
पास उपलब्ध था उसका श्रध्ययन इसी दृष्टि से किया गया । जहां -जहां
ऐसे प्रमाण मिले कि जिनसे यह सिद्ध किया जा सके कि भ्रायें लोग बाहर
से गाए थे-वे इकट्ठे किये गए । वास्तव में वे प्रमाण यह सिद्ध नह्दीं कर
सकते थे कि हम लोग यहां बाहर से श्राए हें । श्रब हम उन्हीं प्रमाणों पर!
विचार करने लगे हें: --
भाषाओं की समता के आधार पर
प्राज से लगभग १५० वर्ष पहले की बात है । कलकत्ते में सर विलि
यम जान्स को संस्कत्र पढ़ते-पढ़ते ध्यान श्राया कि संस्कृत भाषा कई बातों
में प्रीक, लेटिन, जमंन श्रौर सेल्टिक भाषाधोंसे मिलती-जुलती है । इस
सूभ पर उन्होंने विचार किया श्रोर विद्वानों में उसे फंलाया । उन्होंने तो
केवल चार भाषाध्रों की समता पर ही विचार किया था पर खोज करने से
पता चला कि बीसों भाषाएं संस्कृत से मिलती हैं । भारत से पश्चिम की
श्रोर पशतो, बलूची, ईरानी (फारसी ) , ये तीनों भाषाएं जेक भाषा से
निकली हैं श्रौर जैक भाषा संस्कत से बिलकुल ही मिलती हे । -इसके
झागे रूस श्रौर बत्गारिया की ''स्लाव” भाषाएं, श्राघनिक यूनानी,
श्र इटालियन, जमंन, फ्रेंच, प्रंग्रेजी, डच, डेनिहा, पुतेंगाली श्रादि
भाषाएं भी संस्कृत से मिलती-जुलती सिद्ध हुई । क्योंकि इन सभी
भाषाओं की मात्-माषा ग्रीक या लैटिन है । प्रीक तथा लैटिन को
संस्कृत के साथ बहुत साम्य हे । इसका भाव यह निकला कि प्राचीन
भाषाओं में संस्कृत, ग्रीक, लेटिन जेक भाषाएं तथा ध्राघुनिक भाषात्रों में
इन्हीं चारों से निकली बंगला, गजर।ती, हिन्दी, मराठी, पदतो, ईरानी,
रूसी, जमंन, फ्रेंच, भ्रग्रेजी, इटालियन, स्पेनिश, पुर्तंगाली, भ्रादि-ये
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