छायावाद युग | Chhaayaavaada Yuga
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
413
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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की आवश्यकता के झनुकूल रूप देने में ही साहित्य की सफलता श्रौर
उपयोगिता निहित है। श्रतः श्राज के समीक्षक यदि श्रपने संकीण मतवादी श्राग्रह
के घेरे में बँध कर ही 'शान्ति-शान्ति' का नारा लगाते रहेंगे श्रौर साहित्य को
वर्ग-संघष का शस्त्र मान कर ही 'समीक्षा करते रहेंगे तो इससे न तो शान्ति-
स्थापन में ही कुछ सहायता मिलेगी, न वग-संघष ही तीव्र होगा श्र न साहित्य
ही समृद्ध हो सकेगा । इसके विपरीत शान्ति स्वप्न बनती जायगी श्रौर साहित्य
अशक्त श्रौर निर्वीय प्रचार बनता जायगा। श्रतएव श्राज के समीक्षकों के सम्मुख
मेरा यह सुभकाव है कि साहित्य को इतिहास के ्रालोक में रख कर उसके सत्
और श्रसत् रूपों का पता लगाने श्रौर साहित्य की सत्परम्परा को श्ागे बढ़ाने
में ही मानवता श्रौर साहित्य दोनों का कल्याण निहित है ।
किसी भी युग या कवि की प्रतियों का विश्लेषण करते हुए उसकी सस्प्र-
वृत्तियों का मइत्व कम कर देना या उन्हें दृष्टि से श्रोकल कर « देना में ्रालो-
चनात्मक श्रपराघ समभता हूँ क्योकि मानवता के कल्याण तथा मानव का मानव
में विश्वास जमाये रखने के लिए अतीत की सत्प्रद्त्तियों की परम्परा से वतमान
साहित्य का सम्बन्ध जोड़ना अत्यन्त अ्रावश्यक है । उसी तरह चतंमान साहित्य-
कारों की त्रालोचना करते समय उनकी इसीलिए श्रवदेलना या. निन्दा करना
कि वे किसी दूसरे मतवाद के अनुयायी हैं झ्थवा वे तटत्थ या स्वतंत्र विचार
के हैं, उतना दी बड़ा श्रपराघ है । निश्चय ही इस प्रहत्ति से न तो शान्ति की
स्थापना हो सकेगी न वर्गह्दीन समाज की; और न इस तरद स्वस्थ, सुन्दर श्रौर
प्रगतिशील साहित्य का ही निर्माण हो सकेगा ।. “'छायावाद-युग” की श्रालोचन।
में मैंने यही दृष्टिकोण श्रपनाया हैं. और उपयुक्त मानद्रड की सहायता से
छायावाद की सदसस्प्रदत्तियों का पता लगाने और राष्ट्रीय सांस्कृतिक परम्परा के
मेल में रख कर उन्हें देखने का प्रयत्न किया है ।. छायावाद की. प्रषप्ठभूमि,
प्रमुख प्रइत्तियों श्रौर कला-सौष्ठव के परीक्षण में मेंने भारतीय सादित्यशास्तर
और इतिहास तथा पाश्चात्य मनोविज्ञान श्रौर समाजशास्त्र से भरपूर सहायता
ली है।में यद दावा नद्दीं करता कि इस प्रबन्ध :में मेरी विचार-सरणी श्र
मेरे निष्कष, सब सही हैं श्र ,पूरण हैं। पर मेरा यदद विश्वास दृढ़ हे कि
साहित्य की सह्दी परीक्षा इतिहास के श्रालोक में ही हो सकती है । श्राघुनिक ज्ञान-
विज्ञान के बिना भी वदद अधूरा ही रहेगा । यदि उनके उपयोग में असावधानी
या गलती से मेरे निष्कर्ष कद्दीं गलत हो गये हों तो वह मेरा दोप होगा, उक्त
समीक्षा-पद्धति या मानदणएड का नद्दीं ।
श्रन्त में मैं इतना निवेदन कर देना चाहता हूँ कि इस प्रबन्ध में छायावाद-
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