कलाकार का दण्ड | Kalaakaar Kaa Danda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वृन्दावनलाल वर्मा -Vrindavanlal Varma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० कलाकाए का दण्ड
(४)
दूसरे दिन नियुक्त समय पर शंख शझ्राया । दोनों मूर्तियां पौर में
रक््खी हुईं थीं । दोनों कलाकार द्वार बाहर चौपाल में बठ गये । बात-
चीत होने लगी ।
शंख--'यवन, श्राप यदि वैष्णुत्र होते तो श्रपोलो की श्राकृति को
बहुत सुन्दर बनाते |?
न्तक--'मैं यदि वेष्णुत्र होता तो श्रपोलो की मूर्ति की मूल शिला
पर पहिली टाँकी दृथौड़ी चलाने के पूव ही श्रात्मघात कर लेता ।?
शुंख---“श्रात्मघात | यह तो बड़ा भारी पाप है । क्या श्राप लोग
श्रात्मघात करने को श्रेयस्कर समभतते हैं १?
झन्तक--'*्रात्मघात तो प्रत्येक दशा में निन्दनीय है, परन्ठु श्रापके
देश में तो सब कोई दर समय अ्त्मघात करते रहते हैं ?”
शंख--'सो कैसे यवन !”
श्न्तक--'त्रापकी श्रात्मा स्वतंत्रता के साथ विचरण नहीं कर
सकती । जहाँ देखो वहाँ झ्ञापका समाज श्र व्यक्ति निपेधों से जकड़ा
हुआ है। प्रत्येक निषेध के सामने श्रापको सिर मुकाना पढ़ता है ।
इमारे देश में न तो इतने निषेध हैं और न निषेधों को इतनीं मान्यता
प्राप्त है ।”
शंख--'हमलोग नीचे ठोकर खाकर ऊपर देखते हैं । श्राप जिनको
निषेघ कहते हैं इम उनको नियम के नाम से पुकारते हैं । श्राप हमारे
जिस संयम को निषेघ कहते हैं इम उसी के द्वारा इस संसार को वश में
कर लेते हैं श्रौर फिर श्रन्तर्यामी शक्ति में मिल जाते हैं ।”
श्रन्तक--'दमारे देश में चलो तो देखोगे कि शओलम्पगिरि के
देवताश्रों के समक् कैसे सुन्दर युवक श्र कैसी कैसी रूअबती सुन्दर यिं
शपने खेलों द्वाग श्ानन्द आर श्चना को मभेंटती हैं । जितनी उनकी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...