आधुनिक साहित्य | Aadhunik Saahity

Aadhunik Saahity by प्रतापनारायण टंडन - Pratapnarayan Tandan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प्रतापनारायण टंडन - Pratapnarayan Tandan

Add Infomation AboutPratapnarayan Tandan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ७. ) छायाबादी विचारधारा में अपने मतलब का कुछ न पाकर, संघर्षा' से घिरे हुए आज के मनुष्य ने तीव्र असंतोष का अनुभव किया । फलतः साहिप्य के क्षेत्र में कुछ ऐसे लोगों का आगमन हुआ, जो माकसे के भौतिकवाद से प्रभावित थे । उन्हें मानव-जीवन की अनेक समस्याओं का हल साम्यवादी विचारधारा में दिखाइ देता था । इन सभी ने हिंदी साहित्य में जिस चाद का प्रारंभ किया अथवा जिसमें योग दिया, वह प्रगतिवाद था, जिसके प्रारंभिक कवियों में 'नवीन', 'दिनकर', '“उअंचल', नरेंद्र शर्मा तथा शिवमंगल सिंह. 'सुमन' के नाम उल्लेखनीय हैं । हम यहाँ प्रगतिवाद अथवा श्औौर किसी वाद की विवेचना न करके सिफ यह कहेंगे, कि इन वादों का जन्म साहित्य के प्रति जनता की बदलती हुई रूचि के फलस्वरूप हुमा था । अब हम गद्य के क्षेत्र में--विशेष रूप से उपन्यास में--यह देखने का प्रयत्र करेंगे कि उसमें केसी स्थिति हे । उत्तर प्रेमचंद-काल के कुछ प्रमुख उपन्यासकारों को यदि हम लें--उन लेखकों को, जो प्रेमचंद के समय से ही लिख रहे हैं, या जिन्होंने प्रेमचंद के बाद लिखना शुरू किया--तो हम देखेंगे कि उन्होंने अपने उपन्यासों में एक विशेष प्रकार की कथावस्तु का उपयोग किया है । सन्‌ पैंताबीस से लेकर पचास तक के बीच लिखें गए उपन्यासों में अधिकांश ऐसे हैं, जिसकी कथावस्तु राजनीति से संबंध रखती है, श्रौर जिनमें स्वतंत्रता-प्राप्ति के पूव भारतीयों द्वारा किए गए आंदोलनों, सरकार द्वारा किए गए दमन तथा अप्याचारों अथवा भारत-विभाजन के कारण उत्पन्न हुइ परिस्थितियों और विषमताश्मीं का वर्णन है । हमारे पुराने उपन्यासकारों के--जो प्रेमचंद युग के तो हैं--लेकिन श्ाज तक साहित्य-सेवा में लगे हैं, यदि हम देखें, तो हमें ज्ञात होगा कि--पेर उखड़ते-से जान पढ़ते हैं । विचारपू्वक देखने पर हमें मालूम होगा कि हमारे हिंदी-साहित्य के क्षेत्र में भी गतिरोध के स्पष्ट चिह्न दिखाई पढ़ते हैं, यद्यपि यहाँ हम उन सभी का विश्लेषण नहीं करेंगे । हाँ, उनके कारणों. पर संक्षेप में विचार करना आवश्यक है । किसी भी भाषा के साहित्य में गतिरोध अथवा इस-जेंसी ही कोई स्थिति उत्पन्न होना, वहाँ के मान्यता-प्राप्त साहित्यिकों की शक्ति कम होने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now