हिन्दी कहानी कला | Hindi Kahani Kala

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Hindi Kahani Kala  by प्रतापनारायण टंडन - Pratapnarayan Tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) की अपेक्षा इसकी आनुपातिक महा में दृद्धि आदि तथ्य आधुनिक कहानी में कैली के महत्व के पस्चियक हैं। प्रस्तुत कृति के ग्यारहवें जच्याय में कहानी के सातवें मु तत्व देशका अथवा वातावरण की व्याख्या की गयी है। कहानी में इस तत्व का सियोजन उसे विश्वसनीय एवं यवाधीत्मक पृष्ठभूमि प्रदान करते के रहिए किया जाता है। इस तत्व के अन्तमेत कहानी में युगीन परिस्थितियों ओर उतके नियामक वैचारिक आन्दोलतों की भूमिका प्रस्तुत की जाती है। जिस रखना में कहानी के सभी मूल उपकरणों में आनुपातिक दृष्टि से देशकाल अथवा वातावरण के चित्रण को अपेक्षाकृत अधिक महत्व प्रदान किया गया हो, उसे वातावरण प्रधान कहानी की कोटि में रखा जाता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से हिन्दी कहानी में नियोजित देशकाल अथवा वाताबरण तत्व के स्वरूपात्मक विकास का अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि प्रथम विकास युग से ही इस तत्व की ओर कहानीकारों द्वारा समुचित ध्यान दिया गया है। भारतेन्दु का से लेकर स्वातंत्योत्तर युग तक की कहानी में विविध क्षेत्रीय वातावरण का चित्रण स्थानीय रंग, छोक तत्व तथा आंचलिक विशेषताओं से युक्त होकर उपलब्ध हुआ है। सिद्धान्ततः कहानी में देशकाल के सफल चित्रण के लिए उसमें कतिपय गुणों का समाबेश आवश्यक है, जिनमें प्रमुख रूप से संक्षिप्तता, वास्तविकता, आलंकारिकता, चित्रात्मकता, वर्णन की सूक्ष्मता तथा तत्वगत सन्तुलन आदि का उल्लेख किया जा सकता है । हिन्दी कहानी के क्षेत्र भे एतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, प्राम्य, धामिक, राजनीतिक, भौगोलिक, जादू, तिलिस्मी, जासूसी तथा प्राकृतिक वातावरण के रूप उपलब्ध होते है । वर्तमान हिन्दी कहानी में वातावरण का सर्वथा स्वाभाविक रूप विविध विशेषताओं से युक्तं होकर बित्रित हुआ है, जो उसके सम्यक्‌ प्रभाव की सूष्टि करने में सक्षम है। कहानी के आठवें और अन्तिम मूल उपकरण के रूप में उद्देश्य तत्व की व्याख्या हस पुस्तकं के आ रहे अध्याय में प्रस्तुत की गयी है। प्राचीन युगीन कथा साहित्य से लेकर वतेमान कालीन कहानी तक उद्देश्य तत्व का स्वरूप भी निरन्तर परिवर्तित और विकसित होता रहा है। सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से उद्देश्य को भी कहानी के एक विशिष्ट तत्व के रूप में मान्य किया जा सकता है, क्योंकि इसकी सम्यक्‌ परिषृर्णता ही कहानी रचना की मूरू प्रेरणा होती है। जिस कहानी में केखक का अभीष्ट ही मुख्य रहता है तथा वह उसी की सिद्धि को केन्द्र में रखकर उसके अनुरूप अन्य तत्वों का नियोजन करता है, उसे उद्देश्यप्रधान कहानी के वर्ग सें रखा जाता है। हिन्दी कहानी में घनो- २




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