कहरानामा और मसलानामा | Kaharanama Aur Masalanama

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Kaharanama Aur Masalanama by अमरबहादुर सिंह अमरेश - Amar Bahadur Singh Amaresh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४) किया है । श्राचायं शुक्ल जी के पदमांवत में “स्तुति-खंड' से लेकर 'उपसंहार' तक ४८ खंड हैं किन्तु इसमें केवल ३० हैं । . पांडुलिपि का प्रथम-फृष्ठ न होने से प्रारम्भिक दाब्द नहीं मिलते । हाँ, पदमांवती के श्रंत में--''इती श्री पदुमावती कथा संपू“1न सुभ मस्तु ॥ सुभ।॥ इसके पदचात्‌ नीचे बाईइं श्रोर लिखा है-॥ ली!ः मनहास:: इससे स्पष्ट है कि इस पांडुलिपि के लेखक श्री मनदास जी हैं । श्री मनदास जी कौन थे, कहाँ के रहने वाले थे, इस सम्बन्ध में बहुत कम ज्ञात हो सका है । किन्तु उन्होंने किस प्रकार जायसी की पांडु लिपि प्राप्त करके उसकी प्रतिलिपि की, यह कहानी बहुत रोचक है। सत्तनामी-सम्प्रदाय के भ्रादि गुरु जगजीवन साहेब (कोटवा) के चार दिष्य _ थे--गोसाइईंदास, दूलनदास, खेमदास तथा देवीदास । ये ही चार “शिष्य गदियाँ” सत्तनामी-सम्प्रदाय के “चार-पावे” कहे जाते हैं । महात्मा दूलन- दास ने €० वर्ष की ्रायु में दूसरा विवाह किया । जिससे “रामबख्स” नामक पृत्र की उत्पत्ति हुई । श्री रामबख्श जी श्रच्छे कवि एवं जायसी के ग्रन्थों के संकलनकर्ता हैं । इन्होंने जायसी के ग्रन्थों की प्रतिलिपि को । उसी पांड्लिपि की यह प्रतिलिपि है जिसे श्री मनदास जी ने लिखी है । इसका प्रमाण लेखक मनदास जी ने स्वयं “पदुमावती' के श्रन्त में पांडू- लिपि लिखने का कारण बताते हुए लिखा है । सत्य गुरु समरत्थ साहेब, राम बकस प्रमान हैं । . तिन लिखायो ग्रन्थ यह पढुमावती . परमान है । शर्ट जद श्र साहेब राम बकस कहि दीन्हा . . लिखि पढुमावत पुरन कोन्हा .. उक्त दोनों उद्धरणों से मेरे कथन की पुष्टि हो जाती है। इस पांडु लिपि के लेखक श्री मनदास सत्तनामी-सम्प्रदाय के थे । उन्होंने अपने गुरु




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