कहरानामा और मसलानामा | Kaharanama Aur Masalanama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
125
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४)
किया है । श्राचायं शुक्ल जी के पदमांवत में “स्तुति-खंड' से लेकर
'उपसंहार' तक ४८ खंड हैं किन्तु इसमें केवल ३० हैं ।
. पांडुलिपि का प्रथम-फृष्ठ न होने से प्रारम्भिक दाब्द नहीं मिलते ।
हाँ, पदमांवती के श्रंत में--''इती श्री पदुमावती कथा संपू“1न सुभ
मस्तु ॥ सुभ।॥ इसके पदचात् नीचे बाईइं श्रोर लिखा है-॥ ली!ः
मनहास:: इससे स्पष्ट है कि इस पांडुलिपि के लेखक श्री मनदास जी हैं ।
श्री मनदास जी कौन थे, कहाँ के रहने वाले थे, इस सम्बन्ध में
बहुत कम ज्ञात हो सका है । किन्तु उन्होंने किस प्रकार जायसी की पांडु
लिपि प्राप्त करके उसकी प्रतिलिपि की, यह कहानी बहुत रोचक है।
सत्तनामी-सम्प्रदाय के भ्रादि गुरु जगजीवन साहेब (कोटवा) के चार दिष्य
_ थे--गोसाइईंदास, दूलनदास, खेमदास तथा देवीदास । ये ही चार “शिष्य
गदियाँ” सत्तनामी-सम्प्रदाय के “चार-पावे” कहे जाते हैं । महात्मा दूलन-
दास ने €० वर्ष की ्रायु में दूसरा विवाह किया । जिससे “रामबख्स”
नामक पृत्र की उत्पत्ति हुई । श्री रामबख्श जी श्रच्छे कवि एवं जायसी
के ग्रन्थों के संकलनकर्ता हैं । इन्होंने जायसी के ग्रन्थों की प्रतिलिपि को ।
उसी पांड्लिपि की यह प्रतिलिपि है जिसे श्री मनदास जी ने लिखी है ।
इसका प्रमाण लेखक मनदास जी ने स्वयं “पदुमावती' के श्रन्त में पांडू-
लिपि लिखने का कारण बताते हुए लिखा है ।
सत्य गुरु समरत्थ साहेब, राम बकस प्रमान हैं ।
. तिन लिखायो ग्रन्थ यह पढुमावती . परमान है ।
शर्ट जद श्र
साहेब राम बकस कहि दीन्हा . .
लिखि पढुमावत पुरन कोन्हा
.. उक्त दोनों उद्धरणों से मेरे कथन की पुष्टि हो जाती है। इस पांडु
लिपि के लेखक श्री मनदास सत्तनामी-सम्प्रदाय के थे । उन्होंने अपने गुरु
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