लक्ष्मीनारायणा मिश्र के नाटक | Lakshmiinarayanana Mishra Ke Naatak

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Book Image : लक्ष्मीनारायणा मिश्र के नाटक  - Lakshmiinarayanana Mishra Ke Naatak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाव्यसाहित्य की परम्परा संस्कृत नाय्यशाख्र के द्राचायों ने नाटक के गय्रत्येक तत्व को गंभीर एवं विस्तृत विवेचना प्रस्तुत की है । वस्तु-विषय का विभाजन करने के साथ ही श्राचायों ने रंगमंच-निर्माण तथा पात्रों के श्मिनय आदि के सम्बंध में भो सविस्तार व्याख्या की है | भरत मुनि ने ब्रह्मा को नाटक का निर्माता बताते हुए नाव्यशास्र में पंचमवेद के नाम से उसका इस प्रकार उल्लेख किया हैं :-- न वेद॒व्यवहारो5य॑संश्राव्य: शूद्ध जातिषु । तस्मात सजा परंवेदे पंचम सर्वे वर्णिक्रम ॥ मरव सुनि के बाद भी नाव्यशास्र से सम्बद्ध अनेक ग्रन्थों की रचना की गई जिनमें से धनंजय कृत “दशरूपक! तथा विश्वनाथ रचित ध्साहित्य दपंणु ग्रन्थ श्रत्यन्त प्रसिद्ध हैं । ललित कलाओों में द्ाचार्यो ने काव्य को सर्वश्रेष्ठ स्थान प्रदान किया है । काव्य के दो सुख्य मेद माने गये हैं--(१) श्रव्य काव्य (२) इश्य काव्य | श्रब्य काव्य के झंतरगत उपन्यास, कहानी, गीति, प्रबन्ध दि श्राते हैं । नाटक दृश्य काव्य है । संस्कृत साहित्य के श्रनुसार नाक मुख्यतः रूपक का ही मेद है, किन्तु हिन्दी में साघारणत: नाटक शब्द प्रयुक्त होता है | नाव्यशाख््र के श्राचार्यों के श्रनुसार नाटक में तीन तत्व प्रमुख हैं :--(१) वस्तु (२१ पात्र (३) रस । नाटक में इन तत्वों का कया महत्व है और प्रत्येक तस्व का नाटक में किस प्रकार समावेश किया जाना तावश्यक है इन सबका नाथ्यशाख्र के प्राचीन श्राचार्यों ने झ्रत्यन्त विस्तृत विवेचन किया है | श्राचायों ने रूपक के दस मेद इस प्रकार माने




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