स्नेह यज्ञ | Sneh Yagya

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Sneh Yagya by रमणलाल वसंतलाल देसाई- Ramanlal Vasantlal Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्नेह-यडा साहब, इमारा मणइल बिना सार्वजनिक सभाएँ बुल्ाये ही सब काम करता है ।' “बहुत विचित्र ! वार्षिक रिपोर्ट और नियमावली मेजिये। देखकर मैं तै करूंगा कि कितनी सहायता दी जाय। बस ! शरब शाप जा सकते हैं |” 'इम रिपोट या नियमावली कुछ भी नहीं छापते । गरीबों को आवश्यक सहायता देने का काम युस रूप से किया जाता है। हम यह भी तै कर चुके हैं कि श्रापसे कितनी रक़म ली जाय |” सुरेन्द्र ने फिर उस श्रादमी को गौर से देखा । बह उन्हें कुछ पागल-सा लगा | हसकर वह बोले : 'य्राप कितनी रकम पाने की श्ाशा करते हैं ? मैं उस पर विचार करूँगा ।' 'ापको सोचने का कष्ट भी न करने दिया जाय |? “इसका मतलब १?” कठोर पड़ते हुए, सुरेन्द्र ने पूछा मतलब यह कि श्रापने वकालत में काफी पैसा पैदा किया है । प्रधान पद से जो वेतन मिलेगा उसकी श्रापकों बिलकुल श्रावश्यकता नहीं है । इसलिए वेतन की बह रक्रम शपने सरल के लिए होने का हमने सोचा है ।' अपने ऐसा सोचा होगा। परन्द मेरी घारणा जुदी है।' इस पागल झादमी को दूसरे के वेतन के बारे में इतनी निश्चित घारणा का विचार कर खिज्ञाखिलाकर हँसते हुए सर सुरेन्द्र बोले--श्रब आप तशरीफ् ले नाइये ।' सर सुरेद्द्र ने पास की मेज़ पर घण्डी बजाने का बटमें दबाने के लिए हाथ लम्पा किया । 'तीसरे श्रादमी की श्रावश्यकता नहीं । श्राप एक चेक लिख द्रीजिये तो मैं चला जाऊँ ।' झागस्तुक ने कददीं । तुम कैसे श्रादमी हो ? चेक किस बात का माँगते शो! चले श्दे




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