शौर्य तर्पण | Shaurya Tarpa

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Shaurya Tarpa by रमणलाल वसंतलाल देसाई- Ramanlal Vasantlal Desaiश्यामू सन्यासी - Shyamu Sanyasi

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श्यामू सन्यासी - Shyamu Sanyasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह प्रतिज्ञा १९ अपनी आँखें पूरी तरह खोलकर रानी की ओर देखा। थोड़ी देर और सो रहिए राणाजी | रानी ने कहा। ओह, में कितना क्र हूँ ! अपनी ही अर्द्धागिनी पर इतना अत्याचार ! रानी- जी, अब तुम सो जाओ।' प्रताप ने कहा। मुझ तो दिन में सोने को समय मिल जाता है। आपको नहीं मिक्ता, इस- ल्ण सो जाइए ।' में आज्ञा देता हैँ, सो जाओ !! अब राणाजी घर में भी आज्ञा देने लगे ! ' में विद्रोही हँँ। अकबरशाह मुझे लटेरा कहता है। आज तेरे सामने भी विद्रोह करना होगा। सोती है या नहीं ?' वाह महाराज, यह तू-तड़ाक बोलने की रीति कहाँ सीखी ? जानते नहीं कि मेवाड़ की महारानी के साथ अदब-कायदे से बोलना होता है।' महारानी ने हँसते हुए कहा। मैं इस समय मेवाड़ की महारानी से नहीं, अपनी पत्नी से बात कर रहा है। मेरी पत्ती मेवाड़ की महारानी है या नहीं, यह नहीं जानता; परन्तु इतना अवश्य जानता हूँ कि में अपनी पत्नी को गँवाना नहीं चाहता।' यह्‌ कहकर राणा प्रताप ने अपनी महारानी को जबरदस्ती परग पर सुखा दिया और अब वह स्वयं उनके वालों में हाथ फेरने छगे। * ओह, कितना कठोर हाथ है आपका ! यदि मुझे सुलाना ही चाहते हैं तो आप हाथ न फिरायें।' रानी ने कहा। मैं जानता हूँ राजपूतनी, तुझको। अब चुपचाप सो আা!? एक सवाल तो पूछ ल।' क्या पूछना है? सो क्‍यों नहीं जाती ? ' অনা बड़ा ही महत्वपूर्ण है।' अच्छी बात है, पूछ छो। जब तक पूछ न छोगी हमें शान्ति नहीं मिलेगी। आपको मेवाड़-भूमि अधिक प्रिय है या में ? दोनो) | लेकिन अधिक कौन प्रिय है?




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