वैदिक धर्म क्या कहता है भाग - 3 | Vaidik Dharm Kya Kahata Hai Bhag - 3

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Vaidik Dharm Kya Kahata Hai Bhag - 3  by श्री कृष्णदत्त भट्ट - Shri Krashndatt Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रज्ञा है उसकी स्थिरा श्दे चारो ओरसे भरे हुए अचल समुद्रमे नदी और नद, जिस तरह सभा जातें हे, उसी तरह जिस आदमीकी सारी कामनाएँ उसीमे समा जाती हे, उसे शान्ति प्राप्त होती हैं । कामनाओ के पीछे दौडनेवालेको नातन्ति नहीं मिलती । विहाय कामान्य: सर्वान्पुमांदचरति निःस्पहः । निर्ममो निरहडूकारः: स शान्तिसघिंगच्छति ॥। लान्ति उसे मिलती है, जो सारी कामनाओको त्याग देता है, जिसे किसीकी ममता नहीं रहती, किसी वातका अहकार नहीं रहता, किसी बातकी स्पृह्टा नही रहती । एपणा ब्राह्मी स्थिति: पार्थ नेनां प्राप्य विभुह्मति । स्थित्वाधस्यामन्तकाले5पि. न्नह्मनिर्वाणमुच्छति ॥ ' यह है ब्राह्मी स्थिति । हे पार्थ, इसे पाकर मनुष्य सोहमे नहीं पडता । अन्तकालमे इससे ब्रह्मानन्द प्राप्त हो जाता है । वजन १ गीता २। ५५--७२




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