जयोदय महाकाव्य | Jayodaya Mahakawy
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
692
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ज्ञानसागर जी महाराज - gyansagar ji maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ९९ 3
१२. अष्टपाहुडका पद्यानुवाव--यहू श्रेयोमार्ग में क्रमश: श्रकाशित हुआ है ।
१३. सातथ जीवम--इसमें मनुष्य जीवनकी महत्ता बताकर कत्त॑व्य पथपर
चरूनेकी प्रेरणा की गई है ।
१४ स्वामी कुम्दकुन्द और सनातन जैन ध्मं--इसमें अनेक प्रमाणोंसे
सत्याथं जेनधमंका निरूपण स्वामी कुल्दकुल्दके ग्रस्थोंके आधारपर किया
गया है ।
डे प्रकार भध्ययन-अध्यापन करते हुए और नये-नये ग्रत्थोको रचना
करते हुए जब आपकी युवावस्था बीती तव आपके मनमें चारित्रको धारण
कर आत्मकल्याणकी भावना जगी । फलस्वरूप बालब्रह्मचारी होते हुए भी
ब्रतरूपसे ब्रह्मचयं प्रतिमा वि० सं० २००४ में धारण कर ली । इस अवस्थामे
भी भाप अपनी ज्ञानोपाजँनकी साधनामें बराबर कगे रहे और इस बीच
प्रकाशित हुए सिद्धान्त ग्रन्थ श्रीघवल जयधघवल, महाबन्धका अपने विधिवत्
स्वाध्याय किया । जब विरक्ति और बढ़ी तो आपने वि० सं० २०१२ में क्षुल्लक
दीक्षा ले ली । लगभग २-२ वर्ष तक और इसमें अभ्यस्त हो जानेपर आपकी
विरक्ति और उदासोनता भौर भी बढ़ी भौर वि० स० २०१४ में आपने आचायं
शिवसागरजी महाराजसे खानियां (जयपुर) मे मुनि दीक्षा ग्रहण की । तबसे
आप मरण-पयंन्त बराबर निर्दोष मुनि ब्रतका पालन करते हुए निरन्तर
शास्त्र अध्ययन-मसन और चिन्तनमे लगे रहे ।
आपका समाधिमरण नसीराबादमे ६ वर्ष पूर्व हुआ, जहाँपर सारी जेन-
समाजने आपका भव्य स्मारक बनाया है । पर चिरस्थायी स्मारक तो उनकी
उक्त अनुपम रचनाएँ हैं ।
भापने प्रौढ प्राह्लल और अनुप्रास, रस, अलंकार आदि काव्यगत सभी
विशेषताओंके साथ जेनघमंके प्राणभूतत अहिंसा, सत्य आदि मूलब्रतों एवं साम्य-
वाद, अनेकान्तवाद, कमंवाद भादि भागमिक एवं दार्शनिक विषयोंका प्रति-
पादन करते हुए पॉँच काव्यग्रन्थोकी रचना की है ।
अन्तिम निवेदन
जिन दातारोंने प्रस्तुत ग्रन्थके प्रकादानाथ उदारता-पुबंक दान दिया है,
उन्हें और धामिक प्रवृत्तिवाले स्वाध्याय-प्रेमी पाठकोंको इस महाकाव्यके
पढतेपर सम्भवत: निराशा हस्तगत होगी कि स्व० आचार्य श्री ज्ञानसागरजी
महाराजने इसे रचकर स्वाध्याय करनेवालोंके लिए कौन-सी अनुपम वस्तु दी
है? उन पाठकोंसे मेरा नगर निवेदन है कि इसे घर्मशास्त्रका ग्रन्थ न समझकर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...