करामवन्ध की प्रकिर्या में मिथ्यात्व और कसया की भूमिका | Karamvandh Ki Prakirya Me Mithyatva Aur Kasay Ki Bhumika (1965) Ac 6621

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Book Image : करामवन्ध की प्रकिर्या में मिथ्यात्व और कसया की भूमिका  - Karamvandh Ki Prakirya Me Mithyatva Aur Kasay Ki Bhumika (1965) Ac 6621

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्य किसी भाव से या कषाय से' नहीं माना जा सकता है। इसमें प्रथम तो मुख्य कारण यह है कि मिथ्यादृष्टि मे औदयिक भाव की ही सिद्धि है। (धवला पु ५, पृ १६४) मिथ्यादृष्टि होने का कारण मिथ्यात्व का उदय ही, है। मिथ्यात्व के उदय के बिना मिथ्यात्व की उत्पत्ति नहीं होती । (धवला पु ५ पृ २०६) औदयिक भावों मे सभी भाव मिथ्यादृष्टित्व के कारण नहीं होते । एक मिथ्यात्व का उदय ही मिथ्यादृष्टिपने का कारण है । क्योकि कुल मिलाकर ५७ प्रत्ययो मे से एक मिथ्यात्व प्रत्यय ही अनन्त ससार का कारण कहा गया है। यथा- 'मिथ्यात्वप्रत्ययो5नन्त ससार' इति गदिते मिथ्यात्वहेतुक इति प्रतीयते। (भगवती आराधना, गा ८२ विजयोदया टीका) मूल मे राग, द्वेष और मोह ये तीन प्रत्यय हैं । मिथ्यात्वादि चार तथा पॉच प्रत्यय भी बन्ध के हेतु हैं । प्राणातिपात आदि २८ प्रत्यय एव कुल मिला कर बन्ध योग्य मिथ्यात्व ५, अविरति १२, कषाय २५ और १५ योग इस प्रकार ५७ प्रत्यय है। एक समय मे पॉच मिथ्यात्वो में से अन्यतम एक से ही मिथ्यात्व का उदय सम्भव है। मूल विवाद का विषय यह है कि भमिथ्यात्व भाव मिथ्यात्व प्रकृति की स्थिति-अनुभाग बन्ध का कारक है या नहीं? प्राकृत 'पंचसग्रह' (गा ४८८, ४८६) मे यह उल्लेख किया गया है कि किस कर्मप्रकृति के अनुभागबन्ध मे कौन प्रत्यय हेतु निमित्तक है । कहा भी है- साता वेदनीय का अनुभाग बन्ध योग प्रत्यय से होता है। मिथ्यात्व गुणस्थान मे बन्ध से व्युच्छिन्न होने वाली सोलह प्रकृतियाँ मिथ्यात्वप्रत्ययक हैं । दूसरे गुणस्थान मे बन्ध से य्युच्छिन्न होने वाली पच्चीस और चौथे में व्युच्छिन्नमान दश इन को मिला कर पैंतीस प्रकृतियाँ द्विप्रत्ययक हैं । क्योंकि इनका पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व की प्रधानता से और दूसरे से चौथे तक असंयम की ' प्रधानता से बन्ध होता है | तीर्थकर और आहारकद्ठिक के बिना शेष सर्व प्रकृतियाँ त्रिप्रत्ययक हैं । क्योकि उनका पहले गुणस्थान परी




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