समयसार | Samayasar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
415
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाथा स०
१८
श्१४५
ही यु के
विषय
व्यवहारनय सेजीव कर्मों को उपजाता है, करता है, बाँघता है, परिशमाता
है, ग्रहण करता है ।
जैसे व्यवहार से राजा श्रपनी प्रजा मे दोष भ्ौर गुणा का उत्पादक होता
है बैसे ही व्यवहार से जीव पुद्गल को कमें रूप करने वाला हू।
११६-११९. समुदाय पातनिका
१२३०-१२
१२३-१२४
१२६--१३०
मिथ्यात्व भ्रादि प्रत्यय पौदगलिक कर्मोदय से उत्पन्न होने के कारण
प्रचेतन है श्रौर ये प्रत्यय ही कर्म बध के कारण है। भात्सा कर्मों का
भाक्ता नही है
जैसे स्त्री पुरुष के सयोग से पुत्र उत्पन्न होता है वैसे ही जीव पुदगल
के सयोग से मिथ्यात्व रागादि होते है । विवक्षा वश कोई जीव के भौर
कोई पुदुगल के कहता है एकात से न जोव के है न पुदुगल के । हल्दी चूने
के सबंध से लाल रग की तरह
भ्रशुद्ध निश्वय नय से रागादि चेतन हैं, शुद्ध निश्वयनय से चेतन है ।
सुक्ष्म शुद्ध निश्वय नय से रागादि का श्रस्तित्व ही नहीहे।
यदि व्यवहार नय से भी जीव रागादि का श्रकत्ता हो तो ससार का
अ्रभाव हो जायगा ।
जिस प्रकार जीव के साथ ज्ञान दर्शन की एकता है उस प्रकार क्रोध की
एकता नही है, यदि एकता हो तो जीव श्रजीव एक हो जायेंगे, कोई भेद
नहीं रहेगा ।
शुद्धनिश्चय नय से जीव रागादि का श्रकर्ता प्रमोक्त तथा भिन्न है किन्तु
व्यहारनय से कर्ता भोक्ता व श्रभिन्न है ।
निश्चयनय व व्यवहारनय मे परस्पर सापेक्षपना है।
द्रव्य कमें का कर्ता श्रसद्धू त व्यवहार नय से है श्रौर रागादि का कर्ता
भ्रशुद्धनिश्वयनय से है यह भी शुद्धनिइचयनय की श्रपेक्षा व्यवहार है ।
पुदुगल द्रव्य कथचित परिणामी है । सवथा श्रपरिशामी मानने पर ससार
का प्रभाव हो जायगा ।
यदि पुदुगल श्रपरिणामी है तो जीव उसको हठात नहीं परिणामा सकता
क्योकि दूसरा द्रव्य शक्ति नही दे सकता ।
यदि वस्तु शक्ति दूसरे को श्रपेक्षा नही रखती ऐसा माना जाय तो घट पट
श्रादि पुदुगल भी कर्म रुप परिगाम जावेगे झ्त कर्मों का उपादान कर्ता
पुद्गल है श्रौर निमित्त कारण जीव है ।
भेद रत्नन्रय साघक होने उपादेय है ।
यदि जीव कर्मों से वद्ध नही है तथा क्रोध श्रादि रूप नहीं परिणमता तो
सपार का श्रभाव हो जायगा । श्रपरिणामी जीव को पुदुगल कर्म क्रोध
रूप कसे परिणमा सकता है । स्वय श्रात्मा क्रोध श्रादि रुप परिणमता
हुप्रा उस रुप हो जाता है
पृष्ठ स०
हद
९९
१००-१०१
१्०रे
१०४
१०
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