शास्त्रवार्तासमुच्चय | Shastravartasamucchay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चर दे ९. मीम॑ंसा तथा कतिपय बौद्ध दार्शनिकों का सर्वशताप्रतिषेधवाद १०. सौब्नान्तिक बौद्ध दार्शनिकों का शब्दा्संवधप्रतिपेषवाद इन मान्यताओं को एक एक करके ले लिया जाए। १. लोकायत दादीनिकों का भातिकवाद : मौतिकवाद का मूठ मन्तव्य है भातिक तत्त्वों से प्रथक किसी चेतन तत्त्व की सत्ता अम्वीकार करना, और ऐसे भौतिकवाद का खंडन उन सभी दार्दनिकों के लिए अनिवार्य हो जाता है जो पुनजन्म की. संभावना में बिश्वास रखते हैं । अतएव हम पति हैं कि प्राचीत भारत के सभी मोक्षवादी दार्शनिकों ने-+ चाहे थे ब्राह्मण हों, बौद्ध अधया जेन-भोतिकबाद का खेडन किया है । सचमुच दि मोक्ष-प्राप्ति का अर्थ है. पुनजन्मचक्न से मुक्ति पाना तो मोक्ष की प्रापति-- अप्राप्ति का प्रश्न ही तब उठता है जब पहले पुनजेन्स की संभावना सिद्ध कर छी जाए, जबकि पुनरन्म की संभावना सिद्ध करने के लिए भोतिकवाद का खंडन जावस्यक है । हरिभद्र के भीतिकवादविरोधी तकों का अन्तिम उद्देश्य भी पुन- जन्म तथा मोक्ष की संभावना में पाठक का. विश्वास उत्पन्न करना है, लेकिन उन तरकों से सहानुभूति कदाचित एक ऐसे पाठक को भी हो सकती डै जो स्व पुनजेन्म की संभावना में विश्वास नहीं रखता । उदाहरण के लिए, जिन पाश्चात्य दार्दानिकों ने भौतिकबाद का खंडन किया है उनकी तकंसरणि एक बड़ी सीमा तक हरिभद्र की तर्कसरणि के समानांतर चलती है, - लेकिन प्रून- जन्म की संभावना में इन दार्शनिकों का. विश्वास नहीं । मौतिकबाद के विरुद्ध हरिमद्र का - मुख्य आरोप यह है कि यदि चेतना भौतिक तत्वों का धर्म है--- न कि किसी अभोतिक तत्वविशेष का (जिसे ' आत्मा आदि नामों से जान्म जाता है )--तो प्रत्येक भौतिक वस्तु को सचेतन होना चाहिए; मीतिवादी का बढ प्रत्युत्त कि चेतना सभी भोतिक वस्तुओं का धर्म न द्ोकर किन्हीं विशेष प्रकार की भौतिक वस्तुओं का धर्म है, हरिभद्र को सन्तुष्ट नहीं करता । वे केवरू इतना मानने को तैयार हैं कि आत्मा के बेथ के छिए उत्तरदायी सिद्ध होनेवाड़े “कर्म एक मीतिक वस्तु हैं, लेकिन स्पष्ट ही यह एक विषयान्तर है--और एक पेसा जिष्यान्तर जो भोतिंकवादी को किसी प्रकार की सांत्ना नहीं पहुँचाता ।




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