मैं इनसे मिली भाग 2 | Mein Inse Mili Vol II

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Mein Inse Mili Vol II by आशारानी व्होरा - Asha Rani Vohra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हू मध्यप्रदेश के तत्हालीन मुख्यमंत्री श्री दारिकाप्रमाद मिश्र उन्हें 7500 सर. वी थैसी भेंट कर सम्मासित करने उनके घर तक चल वर गये थे तो सत्ता को साहित्य वे सम्मान में शुक्ते देख सभी का मन गदूगदू हो उठा था 1 स्वतंत्र भारत में यह अपने ढग की पहली घटना थी और मायनलाल चतुर्वेदी जी के साहित्यकार और व्यक्ति को अभूतप्रूवं विजय । लगा, आस्था की अर्थ॑वत्ता कभी समाप्त नहीं होगी । कुछ समय के लिए भले हो उसकी मार्थकता कर्म समझी जाएं, यह स्थिति सदा नहीं चत सबती । हिम किरीटिनी” “हिम तरगिणी” 'वेणु लो, गू जे घरा', “साहित्य देवता', 'अमोर इरादे, गरीब इरादे, 'समय के पांव, “कला का भगुवाद' उनकी कुछ अन्य प्रसिद्ध कृतियाँ है। इन कृतियों, “शक्ति पूजा” व कर्मचीर” के संपादकत्व में निर्भीक लेखन और अप्रतिम ओोजस्वी वक्ता के रूप में उनकी ख्याति रही, जो आज भी अमिट है, अमर है। अप्रेल 1983 में मध्य प्रदेश शासन साहित्य परिपद्‌ द्वारा उनकी समग्र प्रंथावली का विमोचन समारोह धूमघाम से मनाया गया । युद्धि के अतिरेक के इस युग में भी माखनलाल जी के मानव की हरीतिमा कभी नहीं सुखी । वह सही मायने में कलाकार थे-लेखन मे, पत्रकारिता में, नागरिकता में, बातचीत मे, जीवनयापन में । शरीर से नाजुक, मन से भोले, हृदय से प्रेमिल, आत्मा से विह्वल, विचारों में क्राति+ कारी और सकत्प में शक्तिशाली । इतने स्वतल्र और स्वाभिमानी कि किसी भी स्थिति मे न शुके, न टूटे । पर साथ ही विन्म् भी । अवमानना न किसी मानव की, न किसी मानवीय संवेदना की । इसीलिए उनका संप्रण जीवन ही काव्यमय हो गया था और वे जीने की कला के एक सच्चे कलाकार बन गये थे । महात्मा गाधी कवि नही थे, साहित्यकार नही थे, पर जीने की कला सिखाने वाले कलाकार के रूप में और एक महामानव के रूप में इन दोनों महाषुष्पों में एक साम्य मैं देखती हूँ 1 संवेदना और शाश्वत मुल्यों का साम्य । और मानवीय संवेदना किसी भी मानव, महामानव से भी ऊंची भर शाश्वत चीज है, इसीलिए इनकी याद भी अमिट है। एक समान तिथि की एक ऐतिहासिक संध्या में संवेदनशील जीवन के काव्य को यह उभरती टूटती भीर फिर उभरती लय मुझे शिझोड़ रही है । यादों के तार झनझना उठे है और महू लय उनमें उतरती जा रही है । कक दे शी




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