साहित्य समीक्षा अपूर्व ग्रन्थ | Sahity Samiksha Apurv Granth

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Sahity Samiksha Apurv Granth by कन्हैयालाल पोद्दार - Kanhaiyalal Poddar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काव्य के मिश्रित भेद लुधित सिंदनी को दया-वश अपना शरीर भक्षण कराते हुए बोद्ध के प्रति किसी चादुकारी की उक्ति है । यहाँ बौद्ध श्लौर सिंहिनी का वृत्तान्त प्रसंग-गत होने के कारण प्रस्तुत है और नायक-नायिका का बृत्तान्त' अप्रस्तुत है अतः प्रस्तुत द्वारा श्रप्रस्तुत को बोध कराये जाने मे समासोक्ति श्लड्लार दे। एवं नायक-नायिको की इस शज्ञा रिक चेष्टाओं को देखकर ( प्राकरणिक झर्थ में बोद्ध की इस दयाद्रें चेष्टा को देख कर ) विरक्त मुनिराजों को अभिलाषा उत्तपन्न होने में 'विरोधाभास' . अलक्वार दै। और तीसरे चरण में सापन्हव उम्प्रे्ता भी है। इन अलझ्कारों के अतिरिक्त यहाँ उत्साह स्थायी भाव का ह्षादि संचारि एवं पुल्क आदि अलुभावों द्वारा धर्म-वीर॒ रस की व्यख्रना होती है। अतएव यहाँ अलकवार और झसंलक्यक्रमव्यंग्यध्वनि की संकीणंता है । :पदीर्घीकुवन्पदु॒ मदकलं कूनितं सारसानां; प्रत्यूपेषु स्फुरितकमलामोदमेत्रीकघायः । यत्र स्त्रीयां हृरति.. सुरतग्लानिमंगानुकूल+: शिप्रावात। प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकार: ।”” -मेघदूत भावानुवाद-- चेतोहारी ध्वनि मद-भरी :सारसों की बढ़ाकेः प्रात१ फूले कमल-रज की गन्ध को भी उड़ाके- शिप्रा-वायु प्रिय-इव जहाँ प्रार्थना से रिभ्ाता; कान्ताश्रोका श्रम: सुस्त का स्पर्श से है मिटाता । « इस पथ्य में उज्यनी के अन्तगंत बहने वाली शिप्रा नदी के प्रातः कालीन घीर-समीर का वर्णन हे--उज्ञयनी में प्रभात के समय : कमलों के सोरभ से सुगन्धित शिम्ाननदी का शीतल सन्द पवन . प्रियतम के सदश प्रार्थना में चातुयें दिखलाता हुआ अर्थात्‌ जिस प्रकार प्रियतम मुद भरे मघुर शब्दों: सुगन्वित द्रव्यों और अड्डों के मदुल स्पर्श ( हस्त-संवाइन आदि) से रमणियों का रति-जनितभम 2




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