नागदमन | Nagadaman

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Nagadaman by मूलचन्द प्राणेश - Moolachand Pranesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चव मात, श्राता थि है थे। चारी, वहै आज ते नागणी सूझ वारी 1 सुरभी तणी नागणी ऊच सेवा, गले अध्च नाघा सुरी येह ग्रेवा ॥ अध विनाधिनी मोर दायिनी गो ४ सारकृतिक स्थरप फो दताने के पइचातू कवि फृप्ण से इस पु दे आाधिक महत्व पर मो प्रकाग डलवाता है । गो रस से दया नहीं बनता ? अनेक तरह वे साय पवाय तैयार किये लाते हैं । घज के पेडे मिश्री मावा तो सात सी प्रसिद्ध है । दही दूध रावा चीं था सुसदाई, मठा घोठिया खाड खोहा माई 1 औद्योगिक विकास का लाकाक्षी मान पा मारत यत्र युप में इवाप्त ले रहा है, पर तु फवि के समय का मारत गोमर युग में था 1 तत्कालीन सारे झारधिक समाज का दादा शधि पर हो निभर था । हुलकपण का मुख्य साधन बल हो ये । इस सारो भारत रूपी पृथ्वी यो मार बल के कर्षों पर हो या । कि भी के आधिक महू य थी चर्चा करते हुए घलों को उपयोगिता पर प्रकाश डालना है । अचनी तणो भारि ले कघ श्रायी, जुवो नागणी ते हुतो गव्वु लायो । खा हढ़ा गागढा पाण खेतों, बम नागणी हाथ में आय एती ॥ इस महत्वपण गौघन को चराने की बारी श्रीडण्ण की है और इसकी रक्षा फरना वे अपना परमघम समझते हैं । पालिय नाग ने पमुना के सारे जल को विषाक्त कर दिया है । इत झल हा पाए फरने से गौ बछडे सब मर जाते हैं । गो हयारे इस कालिय को मार फर गो को मचाना ही कृष्ण अपना परम बर्त्व्य समझते हैं । इस काव्य के माध्यम से कवि परोक्ष रुपेण यही कहना चाहता है कि अत्याचारियों द्वारा मारी जाने बालो गो था पशु घन का सरक्षण करना हुर मारतीपर छृष्ण का प्रयम कतब्य है । इसके अतिरिवत कवि चथ्णव मत है । इस फ्या के माध्यम से बहु अपनी मक्ति मावना का प्रदा गम करता हु । इुप्ण जोवन पी इस साधुय 'मरो झोजस्वी लोला का गाव वरना हो कवि फा लक्ष्य है । प्राचीन माधार्षों ने शास्थीय हस्‍्टि से काव्य के अनक भेद किए हैं । मुस्य भेद प्रय थ और मुश्तक हैं | कचा चघ दी हप्टि से प्रवध काव्य को मी दो मापों मे बाटा गया है । सहाकाप्प और खड़ काव्य । चाग-दमसण को रचना दृप्ण जीवन को एड विशिष्ट लय दसत की घटना को लेकर हुई है । अत इसको गणना खड फाय्य में हो करना समीचोन है । चौरगाथा काल में रस प्रधान कया पाय वो *रासो नाम से झभिहित क्या जाता था 1 सराठी और डिगल राहित्य में एक “पवादा” नामक काल्य का प्रकार सी पाया जाता है । पवाडा उत्त बाध्य को पहले




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