नागदमण | Nagadaman

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Nagadaman by मूलचन्द प्राणेश - Moolachand Pranesh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मूलचन्द प्राणेश - Moolachand Pranesh

Add Infomation AboutMoolachand Pranesh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
स्थान दिया है। युद्ध में विजय दे! महत्त्व का अदुभव कराने हेतु विजित के शौय और पराक्रम का दिखशन कराता नितान्त आवश्यक है । ताग दमण मे घुद्ध हृप्य एवं नापराज के बीच हुआ है । कवि ने मागराज के क्ौय का वणन नागरानियों के सु ह ते ही करवाया है-- इसो बाज ते कौण भूलोक बाछ,काछी नागसू जुध्च सप्नाम काछ। चढ़े कु ण काछो तभी सीम चाप,काछी नाग हु आज ही कस काप अपने एुग के सहापराक्रमी योद्धा कप को कपा देने वाले कालिए साय की भीषणता का वणन तो अत्यात वशनीय है | जाह् ब्रिस्स नीछा बहै विस्ख झाक्ा,वदन्त सहस्स वध ध्योम व्याक्वा। बहा शत ग सीठय हेसग चाहा, जिरी फू क आगे भर हू क फाछा ॥ इस डुद्प मयानक सायराज को कौन जावे २ रूंते लगावे * यह पीर प्रइव सभी के सामने ख़डा हो गधा । आछिर सागराती के अनुरोध पर हृवय हृषण मे मुरसीवादन शुदू किया । मुरली का स्वर सप्त पाताल भेंदी या, उसका स्वर स्वग देवताओं को भो सुनाई पश/ ॥ इस मह्षनाद को सुनकर बुध्ठों का हृदय कपायमान हो उठा ॥ श्रज्ष विवाधों इस स्वर से अमृत गान करने सूद । इस महा-मपानक पु राग को घुनकर अत्य/त क्रोधित, समस्त एणों को ऊचा उठाएं, फु कार करते हुएं मागराज अपने दरबार में आया औौर उसने शृष्ण को अपनी पूछ के पर कोरे में पेर छिपा । डक डक करते कालिय में हृष्ण पर प्रहार करते प्रारम्भ किये । कृष्ण के हथ कालिय नाग की गदन के पास ये | बहू एक धारुडी को तरह दिलाई दंते थे ॥ इस द्व 6 युद्ध को देखन सारा नाप समाज एकत्रित हो गया । नागरानियों भी यहां उपस्यित थीं ॥ कोई भी भारतोय नारी झपने सामने किस्तो आय पुष्प द्वारा पति को अपमानित होते सपा पोदे जाते हुए नहों देख सकता! 4 किसो पुरुष को उसको परनों के सामने अपमानित करता उस सारी का निरादर करना है ।इसो कारण इच्छा काछिय को उसके दरवार से बाहर निकालकर यघुना के गहरे पामी में के गए । वहां श्लीडृध्ण मे अपने प्रहारों से ताय को बुरी तरह धायस् किया-- मच मूठ मारा धरे श्रोण झारा, फणारा घणारा करे फूजकारा ॥ इस जबरदस्त मार को सहने को धरक्ति कालिए छें न रहो 1 यहु मतनाद कर उठा । धोह़ष्ण के भरहारों से बह बेहोश हो गया और छोरी घाव को तरह पानो में चैरने छा । कालिय एक अत्पाधारी ताग पा । सत्याचासे के मरने पर सुर, धर आदि समी को शुझ्ी होती है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now